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नए वर्ष में खत्म होगा मोबाइल नंबर बदलने का झंझट

24 सितम्बर
अगर आप अपने मोबाइल सेवा देने वाली कंपनी से खुश नहीं है तो फिर नए वर्ष में इसे बदलने के लिए तैयार हो जाइए। नए वर्ष में इसलिए, क्योंकि तब आपको पुराने नंबर के बदलने का डर नहीं रहेगा। 31 दिसंबर, 2009 के बाद से आप चाहे जिस भी कंपनी का मोबाइल कनेक्शन लें, आपका नंबर आपके साथ ही रहेगा।
बुधवार को दूरसंचार नियामक प्राधिकरण [ट्राई] ने मोबाइल नंबर पोर्टबिलिटी [एमएनपी] को लागू करने संबंधी निर्णायक दिशानिर्देश जारी कर दिए।
इसके मुताबिक मेट्रो और ‘ए’ वर्ग के शहरों में 31 दिसंबर, 2009 से नंबर पोर्टबिलिटी की सुविधा मोबाइल सेवा कंपनियों को देनी होगी। देश के अन्य हिस्से में यह सुविधा 20 मार्च, 2010 से लागू होगी। माना जा रहा है कि इस सुविधा के लागू होने के बाद मोबाइल कंपनियों के बीच बेहतर सेवा देने को लेकर प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी। ग्राहक खोने के भय से मोबाइल आपरेटर अपनी सेवा की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए बाध्य होंगी। हालांकि इस सेवा के लिए ग्राहकों को कुछ फीस भी देनी पड़ सकती है।
एमएनपी लागू होने के बाद अगर एयरटेल की सेवा लेने वाला ग्राहक किसी कारणवश वोडाफोन या रिलायंस की सेवा लेने का फैसला करता है, तब भी उसका एयरटेल वाला नंबर ही काम करता रहेगा। ट्राई के निर्देशों के मुताबिक यह सेवा एक ही लाइसेंस प्राप्त क्षेत्र में उपलब्ध होगी। इसका मतलब यह हुआ कि दिल्ली का ग्राहक यह चाहे कि यहां का नंबर मुंबई में भी काम करने लगे तो यह संभव नहीं होगा। साथ ही एक नंबर को तीन महीने [90 दिनों] तक इस्तेमाल के बाद ही पोर्टबिलिटी के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा। मतलब यह कि एक कंपनी का कनेक्शन कम से कम तीन महीने तो रखना ही पड़ेगा।

इस सुविधा के लिए ग्राहकों से लिए जाने वाले शुल्क का निर्धारण मोबाइल कंपनियां ही करेंगी। टेलीकाम नियामक के मुताबिक ग्राहकों को एमएनपी की सुविधा लेने के लिए नए मोबाइल सेवा प्रदाता के पास आवेदन करना पड़ेगा। साथ ही उसे मौजूदा मोबाइल फोन सेवा कंपनी के बकाए बिल का भुगतान करना होगा। अगर वह ऐसा नहीं करता है तो कंपनी को नंबर काटने का अधिकार होगा। नंबर पोर्टबिलिटी का आवेदन करने के 24 घंटे के भीतर ही इसे वापस लिया जा सकेगा, लेकिन पोर्टबिलिटी फीस वापस नहीं की जाएगी। ग्राहकों को इस सेवा को प्रदान करने में कंपनियां अधिकतम चार दिनों का समय ले सकती हैं। जम्मू व कश्मीर, असम और पूर्वोत्तार के राज्यों में कंपनियों को ज्यादा समय दिया जाएगा।

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