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शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!


शिव की शक्ति, शिव की भक्ति, ख़ुशी की बहार मिले, शिवरात्रि के पावन अवसर पर आपको ज़िन्दगी की एक नई अच्छी शुरुवात मिले!
  
शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
 
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Posted by पर फ़रवरी 20, 2012 में बिना श्रेणी

 

एक अमर जवान को हमारा सलाम … जय हिंद … जय हिंद की सेना !!

जम्मू एवं कश्मीर में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हुए सेना के युवा कमांडो लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को गणतंत्र दिवस पर गुरुवार को शांतिकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किया गया।
नवदीप के पिता सुबेदार मेजर जोगिंदर सिंह ने यहां राष्ट्रपति के हाथों यह सम्मान प्राप्त किया। इस मौके पर नवदीप की मां दर्शक दीर्घा में अपने आंसू नहीं रोक सकीं। नवदीप को पाकिस्तान के साथ लगती नियंत्रण रेखा पर पिछले साल तैनात किया गया था। 20 अगस्त को आतंकियों द्वारा घात लगाकर किए गए हमले पर जवाबी कार्रवाई में उन्होंने चार आतंकियों को मार गिराया था।
इस क्रम में वह अपने सहयोगी जवान को बचाने में भी कामयाब रहे। उसे सुरक्षित बाहर निकालने के बाद वह तब तक गोली चलाते रहे, जब तक कि खुद अचेत नहीं हो गए।
महज पांच माह की अपनी सैन्य सेवा में सर्वोच्च बलिदान देने वाले ले. नवदीप सिंह ने 20 अगस्त, 2011 को जम्मू कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर गुरेज सेक्टर में हुई मुठभेड़ के दौरान कमांडो अभियान की अगुवाई करते हुए 12 आतंकियों के सफाए में कामयाबी दिलाई। अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के इस युवा सैन्य अधिकारी ने अपने साथी के ओर चली हुयी गोली भी अपने सीने पर झेली।  
आज जब पूरा देश  63वें गणतंत्र दिवस समारोह के जोश में झूम रहा है हम नहीं भूलना चाहिए उन जांबाजो को जो देश की सीमा पर अपनी जान की बाज़ी लगा देते है ताकि हम और आप अपने अपने घरो में चैन की नींद ले सकें ! 
सभी मैनपुरी वासियों की ओर से लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को शत शत नमन !!
जय हिंद  … जय हिंद की सेना  !!!
 
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Posted by पर जनवरी 26, 2012 में बिना श्रेणी

 

नेता जी सुभाष चन्द्र बोस … जिंदाबाद !


सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को शत शत नमन |
 
 
नेता जी जिंदाबाद !!
 
जय हिंद !!
 
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Posted by पर जनवरी 23, 2012 में बिना श्रेणी

 

रि पोस्ट – सौर कैलेंडर पर आधारित एकमात्र पर्व – मकर संक्रांति

भारत में मनाए जाने वाले पर्वों में मकर संक्रांति एकमात्र ऐसा पर्व है जो सौर कैलेंडर पर आधारित है जिसकी वजह से यह पर्व हर साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। शेष सभी पर्व चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं।
संस्कृत और कर्मकांड के विद्वान डा रविनाथ शुक्ला ने बताया कि चंद्रमा की तुलना में सूर्य की गति लगभग स्थिर जैसी होती है और मकर संक्रांति सौर कैलेंडर पर आधारित पर्व है इसलिए इसकी तारीख नहीं बदलती। उन्होंने बताया कि देश में मनाए जाने वाले अन्य पर्वों की तारीख बदलती रहती है क्योंकि वह चंद्र कैलेंडर पर आधारित होते हैं और चंद्रमा की गति सूर्य की तुलना में अधिक होती है।
डा. रवि ने बताया कि संक्रांति संस्कृत का शब्द है जो सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश बताता है। हिंदू ज्योतिष के अनुसार, कुल बारह राशियां होती हैं। इस प्रकार संक्रांति भी 12 हुईं। लेकिन मकर संक्रांति तब मनाई जाती है जब सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी को कर्क और मकर रेखाएं काटती हैं। जब सूर्य कर्क रेखा को पार करता है तो पृथ्वी के आबादी वाले हिस्से में उसका प्रकाश कम आता है। इसी दौरान धनु में सूर्य का संचार होने पर सर्दी अधिक होती है जबकि मकर में सूर्य का संचार होने पर सर्दी कम होने लगती है। मकर संक्रंाति से गर्मी तेज होने लगती है और हवाएं चलने लगती हैं। बसंत पंचमी से ये हवाएं गर्म होने लगती हैं जिसकी वजह से रक्त संचार बढ़ जाता है। यही वजह है कि लोगों को बसंत में स्फूर्ति का अहसास होता है। पेड़ों पर नए पत्ते आने के साथ साथ फसल पकने की प्रक्रिया भी गर्म हवा लगने से शुरू हो जाती है। इसलिए कृषि के नजरिए से मकर संक्रंति अहम पर्व होता है।
मकर संक्रांति का पर्व ऐसा पर्व है जो भारत के अलग-अलग प्रदेशों में अलग अलग नामों से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इस पर्व को ‘तिलगुल’ कहा जाता है। राजधानी के एक बैंक में कार्यरत सुप्रिया पाटिल ने बताया कि महाराष्ट्र में मकर संक्रांति पर घर के लोग सुबह पानी में तिल के कुछ दाने डाल कर नहाते हैं। महिलाएं रंगोली सजाती हैं और पूजा की जाती है। पूजा की थाली में तिल जरूर रखा जाता है। इसी थाली से सुहागन महिलाएं एक दूसरे को कुंकुम, हल्दी और तिल का टीका लगाती हैं। इस दिन तिल के विशेष पकवान भी पकाए जाते हैं। हल्दी कुंकुम का सिलसिला करीब 15 दिन चलता है।
एक सरकारी स्कूल की सेवानिवृत्त प्राचार्य तेजिंदर कौर ने बताया कि सिख मकर संक्रांति को माघी कहते हैं। इस दिन उन 40 सिखों के सम्मान में सिख गुरूद्वारे जाते हैं जिन्होंने दसवें गुरू गोविंद सिंह को शाही सेना के हाथों पकड़े जाने से बचाने के लिए अपनी कुर्बानी दी थी। इस दिन हमारे यहां खीर जरूर बनती है।
हिमाचल प्रदेश और हरियाणा में भी माघी की धूम होती है। बिहार में 14 जनवरी को संक्रांति मनाई जाती है। इस दिन लोग सुबह सवेरे स्नान के बाद पूजा करते हैं तथा मौसमी फल और तिल के पकवान भगवान को अर्पित करते हैं। इसके अगले दिन यहां मकरांत मनाई जाती है जिस दिन खिचड़ी का सेवन किया जाता है।
बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश में भी इस पर्व को संक्रांत कहा जाता है। गुजरात में यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। 14 जनवरी को उत्तरायण और 15 जनवरी को वासी उत्तरायण। दोनों दिन पतंग उड़ाई जाती है। घरों में तिल की चिक्की और जाड़े के मौसम की सब्जियों से उंधियू पकाया जाता है।
मकर संक्रांति को कर्नाटक में सुग्गी कहा जाता है। इस दिन यहां लोग स्नान के बाद संक्रांति देवी की पूजा करते हैं जिसमें सफेद तिल खास तौर पर चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद ये तिल लोग एक दूसरे को भेंट करते हैं। केरल के सबरीमाला में मकर संक्रांति के दिन मकर ज्योति प्रज्ज्वलित कर मकर विलाकू का आयोजन होता है। यह 40 दिन का अनुष्ठान होता है जिसके समापन पर भगवान अयप्पा की पूजा की जाती है।
राजस्थान में मकर संक्रांत के दिन लोग तिल पाटी, खीर का आनंद लेते हैं और पतंग उड़ाते हैं। उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद, वाराणसी और हरिद्वार में गंगा के घाटों पर तड़के ही श्रद्धालु पहुंच कर स्नान करते हैं। इसके बाद पूजा की जाती है। उत्तराखंड में इस पर्व की खास धूम होती है। इस दिन गुड़, आटे और घी के पकवान पकाए जाते हैं और इनका कुछ हिस्सा पक्षियों के लिए रखा जाता है।
उड़ीसा में मकर संक्रांति को मकर चौला और पश्चिम बंगाल में पौष संक्रांति कहा जाता है। असम में यह पर्व बीहू कहलाता है। यहां इस दिन महिलाएं और पुरूष नए कपड़े पहन कर पूजा करते हैं और ईश्वर से धनधान्य से परिपूर्णता का आशीर्वाद मांगते हैं। गोवा में इस दिन वर्षा के लिए इंद्र देवता की पूजा की जाती है ताकि फसल अच्छी हो। तमिलनाडु में यह पर्व पोंगल कहलाता है। इस दिन से तमिलों के थाई माह की शुरूआत होती है। इस दिन तमिल सूर्य की पूजा करते हैं और उनसे अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद मांगते हैं। यह पर्व राज्य में चार दिन मनाया जाता है।
आंध्रप्रदेश में भी यह पर्व चार दिन मनाया जाता है। पहले दिन ‘भोगी’ दूसरे दिन ‘पेड्डा पांडुगा’ [मकर संक्रांति] तीसरे दिन कनुमा और चौथे दिन मुक्कानुमा मनाया जाता है।

तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में भोगी के दिन घर का पुराना और अनुपयोगी सामान निकाला जाता है और शाम को उसे जलाया जाता है।
(जागरण से साभार)
आप सभी को मकर संक्रांति की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
 
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Posted by पर जनवरी 14, 2012 में मकर संक्रांति

 

सैनिक धर्म

मैं भारत माँ का प्रहरी हूँ , घायल हूँ पर तुम मत रोना,
साथी घर जाकर कहना , संकेतों में बतला देना,
यदि हाल मेरे पिताजी पूछे तो,
खाली पिंजरा दिखा देना,
इतने पर भी वह न समझे तो
तो होनी का मर्म समझा देना
यदि हाल मेरी माताजी पूछे तो
मुर्झाया फूल दिखा देना
इतने पर भी वह न समझे तो
दो बूंद आंशु बहा देना
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो,
जलता दीप बुझा देना
इतने पर वह न समझे तो
मांग का सिंदूर मिटा देना
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो
माँ का प्यार जाता देना
इतने पर वह न समझे तो
सैनिक धर्म बतला देना …

( आज फेसबुक के हल्ला बोल क्लब पर Shiv Pratap Singh Srinet जी के प्रोफाइल पर यह कविता दिखी तो मन में आया कि यह आप सब तक भी पहुंचनी चाहिए … सो उनसे आज्ञा ले कर यहाँ प्रस्तुत कर दी )
 
जय हिंद … जय हिंद की सेना !!!
 
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Posted by पर जनवरी 5, 2012 में बिना श्रेणी

 

नव वर्ष २०१२ की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

आपकी आँखों में सजे है जो भी सपने ,
 और दिल में छुपी है जो भी अभिलाषाएं !
 यह नया वर्ष उन्हें सच कर जाए ;
 आप के लिए यही है हमारी शुभकामनायें !
 
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Posted by पर दिसम्बर 31, 2011 में बिना श्रेणी

 

जन-गण-मन के 100 साल

यह धुन सुनते ही हम सभी रोमाचित हो जाते हैं और शरीर खुद-ब-खुद सावधान की मुद्रा में आ जाता है। दोस्तों, हम बात कर रहे हैं देश के राष्ट्रगान ‘जन-गण-मन’ की।  आज यानी 27 दिसबर को इस रचना के सौ साल पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर आइए जानें इसके बारे में कुछ दिलचस्प बातें..
दोस्तों, क्या आपने कभी इस बात पर गौर किया है कि स्कूल में आपके दिन की शुरुआत किस खास तरीके से होती है? वह तरीका, जो हर दिन आप सभी के भीतर राष्ट्रप्रेम और देश के लिए कुछ करने का जज्बा जगाता है। हम बात कर रहे हैं अपने देश के राष्ट्रगान जन-गण-मन की, जिससे स्कूल में आपके सुबह की शुरुआत होती है। देश के सभी स्कूलों में प्रार्थना और राष्ट्रगान के बाद ही कक्षाएं आरंभ होती हैं। राष्ट्रीय और प्रमुख सरकारी समारोहों की शुरुआत भी राष्ट्रगान से ही होती है।
क्या है राष्ट्रगान
देश के प्रति सम्मान व राष्ट्रप्रेम की भावना जताने के लिए जनता में लोकप्रिय खास गीत को ही शासकीय तौर पर राष्ट्रगान का दर्जा दिया जाता है। अन्य गीतों की तुलना में राष्ट्रगान की भावना अलग होती है। इसमें मुख्य भाव राष्ट्रभक्ति की भावना है।
राष्ट्रगान रचे जाने की कहानी
वैसे तो 1911 में ब्रिटेन के सम्राट जॉर्ज पचम के भारत आने पर उनके स्वागत के लिए रवींद्रनाथ टैगोर से यह गीत लिखवाया गया था [टैगोर ने यह बात खुद अपने एक मित्र पुलिन बिहारी सेन को पत्र लिखकर बताई थी], लेकिन एक सच्चे देशभक्त होने के कारण टैगोर ने इसमें अपने देश के महत्व का वर्णन किया। यह गीत कुछ ही साल में आजादी के लिए लड़ रहे स्वतत्रता सेनानियों में जोश भरने लगा। इस गीत की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए ही इसे 27 दिसबर, 1911 को भारतीय राष्ट्रीय काग्रेस के कोलकाता अधिवेशन में गाया गया। इसके बाद आजादी के आदोलन से जुड़े हर आयोजन में इसकी गूंज सुनाई देनी लगी। रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा मूल रूप से बगला में रचित और सगीतबद्ध जन-गण-मन के हिंदी सस्करण को सविधान सभा ने भारत के राष्ट्रगान के रूप में 24 जनवरी, 1950 को अपना लिया। इस तरह देखा जाए तो ‘जन-गण-मन’ चार दिन बाद यानी 27 दिसबर को अपनी रचना के सौ साल पूरे कर रहा है। अगले ही महीने यानी 24 जनवरी, 2012 को इसे राष्ट्रगान के रूप में भी 61 वर्ष हो जाएंगे।
गायन का सही तरीका
राष्ट्रगान के रूप में ‘जन-गण-मन’ के गायन की अवधि लगभग 52 सेकेंड है। कुछ अवसरों पर इसे सक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है। इसके तहत इसकी प्रथम तथा अंतिम पक्तिया ही बोलते हैं, जिसमें करीब 20 सेकेंड का समय लगता है।
जरूरी नियम
राष्ट्रगान की गरिमा को बनाये रखने के लिए इसे गाये या बजाये जाने पर श्रोताओं को सावधान की मुद्रा में खड़े रहना चाहिए। हालाकि किसी मूवी या डाक्यूमेंट्री के हिस्से के रूप में बजाने पर श्रोताओं से अपेक्षित नहीं होता कि वे खड़े हो जाएं।
कब गायें-बजायें
राष्ट्रगान के सही सस्करण के बारे में समय-समय पर सरकार द्वारा अनुदेश जारी किए जाते हैं। इसके पूर्ण सस्करण को विभिन्न अवसरों पर सामूहिक गान के रूप में गाया-बजाया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज फहराने, सास्कृतिक कार्यक्रमों, परेड, सरकारी कार्यक्रम में राष्ट्रपति के आगमन और वहा से उनके जाने के समय, ऑल इंडिया रेडियो पर राष्ट्र के नाम राष्ट्रपति के सबोधन, राज्यपाल/लेफ्टिनेंट गवर्नर के औपचारिक राज्य कार्यक्रमों में आने-जाने, राष्ट्रीय ध्वज को परेड में लाए जाने आदि के समय इसे गाया-बजाया जाता है। विद्यालयों में सामूहिक रूप से गाकर शुरुआत की जा सकती है।
विदेशों में राष्ट्रगान
सबसे पुराना राष्ट्रगान ग्रेट ब्रिटेन के ‘गॉड सेव द क्वीन’ को माना जाता है। इसे वर्ष 1825 में राष्ट्रगान के रूप में वर्णित किया गया। हालाकि यह 18वीं सदी के मध्य से ही देशप्रेम के गीत के रूप में लोकप्रिय था और राजसी समारोहों के दौरान गाया जाता था। 19वीं तथा 20वीं सदी के आरंभ में अधिकाश यूरोपीय देशों ने ब्रिटेन का अनुसरण किया।
राष्ट्रगान के रचयिता
गुरुदेव के नाम से लोकप्रिय और पहले नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी की सतान के रूप में 7 मई, 1861 को हुआ था। बैरिस्टर बनाने के लिए उनके पिता ने 1878 में उनका नाम इंग्लैंड के ब्रिजटोन में कराया। उन्होंने लदन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन भी किया, लेकिन 1880 में डिग्री हासिल किए बिना स्वदेश वापस आ गए। 1883 में मृणालिनी देवी से उनका विवाह हुआ। बचपन से ही कविता, छंद और भाषा पर अद्भुत पकड़ रखने वाले टैगोर ने पहली कविता आठ साल की उम्र में लिखी थी। उन्होंने कविता, गीत, कथा, उपन्यास, नाटक, प्रबध, शिल्पकला-सभी विधाओं में रचना की। इनमें प्रमुख हैं गीताजलि, गीति माल्य, शिशु, खेया, मानसी, सोनार तारी, राजा, डाकघर, गोरा, घरे बहिरे, योगायोग आदि। बचपन से ही प्रकृति को पसद करने वाले टैगोर 1901 में सियालदह छोड़कर शातिनिकेतन आ गए और वहा लाइब्रेरी और विश्वभारती शिक्षा केंद्र बनाया, जो आज एक जाना-माना विश्वविद्यालय है। 1913 में ‘गीताजलि’ के लिए उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने वाले वे पहले भारतीय थे। टैगोर ने दो हजार से ज्यादा गीतों की रचना की और उन्हें सगीत भी दिया। उनके नाम पर ही इसका नाम ‘रवींद्र सगीत’ पड़ गया। जीवन के आखिरी दिनों में उन्होंने चित्र भी बनाने आरंभ कर दिए। टैगोर महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने गाधी जी को महात्मा का विशेषण दिया तो गाधी ने उन्हें गुरुदेव कहकर बुलाया।
* रवींद्रनाथ टैगोर दुनिया के अकेले ऐसे व्यक्ति हैं, जिनकी रचना को एक से अधिक देशों में राष्ट्रगान का दर्जा प्राप्त है। उनकी एक दूसरी कविता ‘आमार सोनार बाग्ला’ को आज भी बाग्लादेश में राष्ट्रगान का दर्जा मिला हुआ है।
* रवींद्रनाथ टैगोर नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले भारतीय भी हैं। कविताओं के सग्रह ‘गीताजलि’ के लिए उन्हें 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
* 12 दिसबर, 1911 को जॉर्ज पचम ने कोलकाता की बजाय दिल्ली को भारत की राजधानी बनाने की घोषणा की थी। टैगोर ने इस अवसर के लिए उसी साल ‘भारत भाग्य विधाता’ गीत की रचना की थी।
* ब्रिटिश सरकार ने रवींद्रनाथ टैगोर को ‘सर’ की उपाधि दी थी, जिसे 1919 में जलियावाला बाग काड से दुखी होकर उन्होंने लौटा दिया।
* 1911 में जॉर्ज पचम के राज्याभिषेक के अवसर पर कई हिन्दी लेखकों ने भी रचनाएं लिखी थीं। इनमें बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ का ‘सौभाग्य समागम’, अयोध्या सिह उपाध्याय ‘हरिऔध’ का ‘शुभ स्वागत’, श्रीधर पाठक का ‘श्री जॉर्ज वदना’, नाथूराम शर्मा ‘शकर’ का ‘महेंद्र मगलाष्टक’ प्रमुख हैं।
[आलेख : -अरुण श्रीवास्तव]
 
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Posted by पर दिसम्बर 27, 2011 में बिना श्रेणी

 

चला गया कला का कोहिनूर … सत्यदेव दुबे (१९३६ – २०११)

प्रख्यात निर्देशक, अभिनेता और पटकथा लेखक सत्यदेव दूबे का लंबी बीमारी के बाद रविवार दोपहर करीब साढ़े बारह बजे निधन हो गया। वह 75 वर्ष के थे।

सत्यदेव दूबे के पौत्र ने कहा, वह पिछले कई महीने से कोमा थे। वह मस्तिष्क आघात से पीडि़त थे और सुबह साढ़े 11 बजे अस्पताल में निधन हो गया। चर्चित नाटककार और निर्देशक सत्यदेव दूबे को इस साल सितंबर महीने में जूहू स्थित पृथ्वी थिएटर कैफे में दौरा पड़ा था और तभी से वह कोमा में थे।
पिछले कुछ समय से दूबे का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था और पिछले वर्षो में कई बार उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित सत्यदेव दूबे ने मराठी-हिंदी थिएटर में काफी ख्याति हासिल थी। उनका जन्म छत्तीसगढ़ के विलासपुर में हुआ था लेकिन उन्होंने मुंबई को अपना घर बना लिया था। मराठी सिनेमा में उन्होंने काफी नाम कमाया। उन्होंने अपने लंबे करियर में स्वतंत्रता के बाद के लगभग प्रमुख नाटककारों के साथ काम किया था। 
आइये एक नज़र डालते है उनके जीवन पर …

जीवन परिचय

सत्यदेव दुबे देश के शीर्षस्थ रंगकर्मी और फिल्मकार थे. छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में 1936 में जन्मे सत्यदेव दुबे देश के उन विलक्षण नाटककारों में थे, जिन्होंने भारतीय रंगमंच को एक नई दिशा दी. उन्होंने फिल्मों में भी काम किया और कई पटकथाएं लिखीं. देश में हिंदी के अकेले नाटककार थे, जिन्होंने अलग-अलग भाषाओं के नाटकों में हिंदी में लाकर उन्हें अमर कर दिया. उनका निधन 25 दिसंबर 2011 को मुंबई में हुआ.

कार्यक्षेत्र

धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.

सम्मान और पुरस्कार

धर्मवीर भारती के नाटक अंधा युग को सबसे पहले सत्यदेव दुबे ने ही लोकप्रियता दिलाई. इसके अलावा गिरीश कर्नाड के आरंभिक नाटक ययाति और हयवदन, बादल सरकार के एवं इंद्रजीत और पगला घोड़ा, मोहन राकेश के आधे अधूरे और विजय तेंदुलकर के खामोश अदालत जारी है जैसे नाटकों को भी सत्यदेव दुबे के कारण ही पूरे देश में अलग पहचान मिली.

फिल्मोग्राफी

  • अंकुर  – 1974 – संवाद और पटकथा 
  • निशांत  – 1975 -संवाद
  • भूमिका – 1977 – संवाद और पटकथा
  • जूनून  – 1978 – संवाद
  • कलयुग – 1980 – संवाद
  • आक्रोश – 1980 – संवाद
  • विजेता – 1982 – संवाद और पटकथा
  • मंडी  – 1983 – पटकथा
 मैनपुरी के सभी कला प्रेमियों की ओर से सत्यदेव दुबे साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि ! 
 
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Posted by पर दिसम्बर 25, 2011 में बिना श्रेणी

 

सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें !

 
 
 
आप सभी को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनायें इस कामना के साथ कि संता क्लाज हमारे देशवासियों को सुख, समृद्धि, शांति, स्वस्थ, प्रसन्न, भ्रष्टाचार से मुक्ति, आतंक से मुक्ति, दुखों से मुक्ति, आपसी प्रेम, सद्भाव, भाईचारा जैसे जरूरी उपहार देने अवश्य ही आयेगे ।
 
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Posted by पर दिसम्बर 25, 2011 में बिना श्रेणी

 

अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर विशेष रि-पोस्ट

राम प्रसाद बिस्मिल
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में काकोरी कांड एक ऐसी घटना है जिसने अंग्रेजों की नींव झकझोर कर रख दी थी। अंग्रेजों ने आजादी के दीवानों द्वारा अंजाम दी गई इस घटना को काकोरी डकैती का नाम दिया और इसके लिए कई स्वतंत्रता सेनानियों को 19 दिसंबर 1927 को फांसी के फंदे पर लटका दिया।
अशफाक उल्ला खा
फांसी की सजा से आजादी के दीवाने जरा भी विचलित नहीं हुए और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गए। बात नौ अगस्त 1925 की है जब चंद्रशेखर आजाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह सहित 10 क्रांतिकारियों ने मिलकर लखनऊ से 14 मील दूर काकोरी और आलमनगर के बीच ट्रेन में ले जाए जा रहे सरकारी खजाने को लूट लिया।
दरअसल क्रांतिकारियों ने जो खजाना लूटा उसे जालिम अंग्रेजों ने हिंदुस्तान के लोगों से ही छीना था। लूटे गए धन का इस्तेमाल क्रांतिकारी हथियार खरीदने और आजादी के आंदोलन को जारी रखने में करना चाहते थे।
इतिहास में यह घटना काकोरी कांड के नाम से जानी गई, जिससे गोरी हुकूमत बुरी तरह तिलमिला उठी। उसने अपना दमन चक्र और भी तेज कर दिया।
अपनों की ही गद्दारी के चलते काकोरी की घटना में शामिल सभी क्रांतिकारी पकडे़ गए, सिर्फ चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी के 45 सदस्यों पर मुकदमा चलाया गया जिनमें से राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खान, राजेंद्र लाहिड़ी और रोशन सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
ब्रिटिश हुकूमत ने पक्षपातपूर्ण ढंग से मुकदमा चलाया जिसकी बड़े पैमाने पर निंदा हुई क्योंकि डकैती जैसे मामले में फांसी की सजा सुनाना अपने आप में एक अनोखी घटना थी। फांसी की सजा के लिए 19 दिसंबर 1927 की तारीख मुकर्रर की गई लेकिन राजेंद्र लाहिड़ी को इससे दो दिन पहले 17 दिसंबर को ही गोंडा जेल में फांसी पर लटका दिया गया। राम प्रसाद बिस्मिल को 19 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल और अशफाक उल्ला खान को इसी दिन फैजाबाद जेल में फांसी की सजा दी गई।
फांसी पर चढ़ते समय इन क्रांतिकारियों के चेहरे पर डर की कोई लकीर तक मौजूद नहीं थी और वे हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गए।
काकोरी की घटना को अंजाम देने वाले आजादी के सभी दीवाने उच्च शिक्षित थे। राम प्रसाद बिस्मिल प्रसिद्ध कवि होने के साथ ही भाषायी ज्ञान में भी निपुण थे। उन्हें अंग्रेजी, हिंदुस्तानी, उर्दू और बांग्ला भाषा का अच्छा ज्ञान था।
अशफाक उल्ला खान इंजीनियर थे। काकोरी की घटना को क्रांतिकारियों ने काफी चतुराई से अंजाम दिया था। इसके लिए उन्होंने अपने नाम तक बदल लिए। राम प्रसाद बिस्मिल ने अपने चार अलग-अलग नाम रखे और अशफाक उल्ला ने अपना नाम कुमार जी रख लिया।
खजाने को लूटते समय क्रांतिकारियों को ट्रेन में एक जान पहचान वाला रेलवे का भारतीय कर्मचारी मिल गया। क्रांतिकारी यदि चाहते तो सबूत मिटाने के लिए उसे मार सकते थे लेकिन उन्होंने किसी की हत्या करना उचित नहीं समझा।
उस रेलवे कर्मचारी ने भी वायदा किया था कि वह किसी को कुछ नहीं बताएगा लेकिन बाद में इनाम के लालच में उसने ही पुलिस को सब कुछ बता दिया। इस तरह अपने ही देश के एक गद्दार की वजह से काकोरी की घटना में शामिल सभी जांबाज स्वतंत्रता सेनानी पकड़े गए लेकिन चंद्रशेखर आजाद जीते जी कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आए। 
सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खान के बलिदान दिवस पर उनको शत शत नमन !
 
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Posted by पर दिसम्बर 19, 2011 में बिना श्रेणी