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रि – पोस्ट विजय दिवस पर विशेष

ऊपर दी गई इस तस्वीर को देख कर कुछ याद आया आपको ?

आज १६ दिसम्बर है … आज ही के दिन सन १९७१ में हमारी सेना ने पाकिस्तानी सेना को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था … और बंगलादेश की आज़ादी का रास्ता साफ़ और पुख्ता किया था ! तब से हर साल १६ दिसम्बर विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है !
आइये कुछ और तस्वीरो से उस महान दिन की यादें ताज़ा करें !

आप सब को विजय दिवस की हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

जय हिंद !!!
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Posted by पर दिसम्बर 16, 2011 में बिना श्रेणी

 

डाइबिटिक रेटिनोपैथी हल्के में लेना पड़ेगा भारी

हम में से सब को अपना अपना परिवार बेहद प्रिय होता है … और होना भी चाहिए … अगर परिवार के एक भी सदस्य पर कोई विपत्ति आ जाये तो पूरा परिवार परेशान हो जाता है … ख़ास कर अगर परिवार का सब से ज़िम्मेदार बन्दे पर कोई विपत्ति आ जाये तो मामला और भी संजीदा हो जाता है … ऐसा ही कुछ हुआ है मेरी ससुराल पक्ष में … मेरे मामा ससुर साहब श्री बाल कृष्ण चतुर्वेदी जी पिछले काफी महीनो से जूझ रहे है अपनी बीमारी से … मामा जी को शुगर है और इसी के कारण लगभग ४ महिना पहले अचानक उनकी दोनों आँखों की रौशनी चली गयी … हम सब काफी परेशान हो गए कि यह अचानक से क्या हो गया … बाल कृष्ण मामा जी ही पूरे परिवार को संभालें हुए है पिछले २ सालों से … जब एक एक सालों के अंतर से उनके दो भाइयो का निधन हो गया ! 
मेरी जानकारी में भी यह पहला मामला था कि जब शुगर के चलते किसी की आँखों की रौशनी जाने के बारे में सुना हो … खैर आजकल मामा जी पहले से काफी बहेतर है … उनका इलाज चल रहा है और भगवान् ने चाहा तो बहुत जल्द उनको पूरा आराम भी आ जायेगा! 
आज ऐसे ही नेट पर कुछ खंगालते हुए एक आलेख पर नज़र पड़ी … जिस को पढ़ कर मामाजी का ख्याल आ गया और साथ साथ उनकी बीमारी के बारे में भी काफी जानकारी मिल गयी ! यहाँ उस आलेख को आप सब के साथ साँझा कर रहा हूँ ताकि आप सब को यह जानकारी मिल सकें !
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मधुमेह के आँख पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से कम लोग ही वाकिफ हैं। डाइबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसा रोग है, जिसमें आँख की रेटिना पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों की अनदेखी करने पर रोगी की आँख की रोशनी तक जा सकती है। 
कैसे लाएं इस रोग को काबू में..?
मधुमेह या डाइबिटीज को नियत्रण में नहीं रखा गया तो यह कालातर में आँखों की रेटिना [आंख का पर्दा] पर दुष्प्रभाव डालती है। मधुमेह से गुर्र्दो, तत्रिकाओं [न‌र्व्स] व शरीर के अन्य अंगों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अनेक लोग अवगत हैं, लेकिन इस रोग के आखों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से बहुत कम लोग वाकिफ हैं। डाइबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसा रोग है, जिसमें आँख की रेटिना पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव की अनदेखी की गयी, तो इस मर्ज में आँख की रोशनी तक जा सकती है।
रोग का स्वरूप
डाइबिटिक रेटिनोपैथी के प्रतिकूल प्रभाव से रेटिना की छोटी रक्त वाहिकाएं [स्माल ब्लड वेसेल्स] कमजोर हो जाती हैं और इनके मूल स्वरूप में बदलाव हो जाता है। रक्त वाहिकाओं में सूजन आ सकती है, रक्तवाहिकाओं से रक्तस्राव होने लगता है या फिर इन रक्त वाहिकाओं में ब्रश की तरह की कई शाखाएं सी विकसित हो जाती हैं। इस स्थिति में रेटिना को स्वस्थ रखने के लिए ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति में बाधा पड़ती है।
लक्षण
शुरुआती दौर में डाइबिटिक रेटिनोपैथी के लक्षण सामान्य तौर पर प्रकट नहीं होते, लेकिन जैसे-जैसे बीमारी बढ़ती है,वैसे-वैसे दृष्टि में धुंधलापन आने लगता है। अगर समुचित इलाज नहीं किया गया, तो अचानक आँख की रोशनी चली जाती है।
याद रखें
* गर्भावस्था में डाइबिटिक रेटिनोपैथी की समस्या बढ़ जाती है।
* उच्च रक्तचाप [हाई ब्लडप्रेशर] इस रोग की स्थिति को गभीर बना देता है।
* बचपन या किशोरावस्था में मधुमेह से ग्रस्त होने वाले बच्चों व किशोरों में यह मर्ज युवावस्था मे भी हो सकता है।
इलाज
डाइबिटिक रेटिनोपैथी का इलाज दो विधियों से किया जाता है
1. लेजर से उपचार: इसे ‘लेजर फोटोकोएगुलेशन’ भी कहते हैं, जिसका ज्यादातर मामलों में इस्तेमाल किया जाता है। मधुमेह से ग्रस्त जिन रोगियों की आँखों की रोशनी के जाने या उनकी दृष्टि के क्षीण होने का जोखिम होता है, उनमें इस उपचार विधि का प्रयोग किया जाता है। इस सदर्भ में यह बात याद रखी जानी चाहिए कि लेजर उपचार का प्रमुख उद्देश्य दृष्टि के मौजूदा स्तर को बरकरार रखकर उसे सुरक्षित रखना है, दृष्टि को बेहतर बनाना नहीं। रक्त वाहिकाओं [ब्लड वेसल्स] में लीकेज होने से रेटिना में सूजन आ जाती है। इस लीकेज को बंद करने के लिए इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। यदि नेत्रों में नई रक्तवाहिकाएं विकसित होने लगती हैं, तो उस स्थिति में पैन रेटिनल फोटोकोएगुलेशन [पीआरपी] तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। बहरहाल लेजर तकनीक से सामान्य तौर पर कारगर लाभ मिलने में तीन से चार महीने का वक्त लगता है।
2  वीट्रेक्टॅमी: कभी-कभी नई रक्त वाहिकाओं [ब्लड वैसल्स] से आँख के मध्य भाग में जेली की तरह रक्तस्राव होने लगता है। इस स्थिति को ‘वीट्रीअॅस हेमरेज’ कहते हैं, जिसके कारण दृष्टि की अचानक क्षति हो जाती है। अगर ‘वीट्रीअॅस हेमरेज’ बना रहता है, तब वीट्रेक्टॅमी की प्रक्रिया की जाती है। यह सूक्ष्म सर्जिकल प्रक्रिया है। जिसके माध्यम से आँख के मध्य से रक्त और दागदार ऊतकों [टिश्यूज] को हटाया जाता है।
कब बढ़ता है खतरा
मधुमेह की अवधि के बढ़ने के साथ इस रोग के होने की आशकाएं बढ़ती जाती हैं। फिर भी ऐसा देखा गया है कि 80 फीसदी लोग जो लगभग पिछले 15 सालों से अधिक वक्त से मधुमेह से ग्रस्त हैं, उनकी रेटिना की रक्त वाहिकाओं में कोई न कोई विकार [डिफेक्ट] आ जाता है। 
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Posted by पर दिसम्बर 14, 2011 में बिना श्रेणी

 

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया … देव आनंद

२६ सितम्बर १९२३  – ०४ दिसम्बर २०११
मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया। जिस वक्त यह गाना लिखा गया और फिल्माया गया किसी ने नहीं सोचा था कि देव आनंद बालीवुड में इतनी लंबी पारी खेलेंगे जिसको दुनिया सलाम करेगी। 1946 से लगातार 2011 तक बालीवुड में सक्रिय रहने के बाद बालीवुड के इस अभिनेता ने लंदन में अंतिम सांस ली। 88 वर्ष की उम्र में देव साहब का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह लंदन इलाज के सिलसिले में गए हुए थे। 26 सितंबर 1923 में पंजाब के गुरदासपुर जिले में जन्मे देव साहब का फिल्मों से बहुत पुराना नाता रहा है। उनका हमेशा से ही रुझान फिल्मों की तरफ रहा। बालीवुड का रुख करने से पहले उन्होंने चालीस के दशक की शुरुआत में मुंबई में मिलिट्री सेंसर आफिस में काम किया। इसके बाद उन्होंने आल इंडिया रेडियो में भी काम किया था। लेकिन जब उन्होंने बालीवुड का रुख किया तो फिर कभी पलट कर नहीं देखा। देव आनंद बालीवुड के दूसरे ऐसे अभिनेता थे जिन्होंने शो-मैन राजकपूर के बाद अपने बैनर के तहत फिल्मों का निर्माण किया। अपने बैनर के तहत कुल 35 फिल्मों का निर्माण करने वाले देव आनंद ने जीनत अमान समेत कई दूसरी अभिनेत्रियों को बालीवुड के पर्दे पर लेकर आए थे। देव आनंद के संवाद बोलने का तरीका हो या उनके कपड़े पहने का अंदाज सभी लोगों के सर चढ़ कर बोलता था। देव साहब की शोहरत का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि लोगों के काले कपड़े पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
देव साहब को आज भी फिल्म जगत में एक दिग्गज अभिनेता के रूप में जाना जाता है। आखिर तक उनके दिल और दिमाग से फिल्मों का जुनून कम नहीं होने पाया। एक फिल्म के निर्माण के दौरान ही वह दूसरी फिल्म की कहानी दिमाग में आने लगती थी। देव साहब के साथ उनके दोनों भाई चेतन आनंद और केतन आनंद का भी बालीवुड में काफी सक्रिय योगदान रहा। देव आनंद साहब के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने गुरू दत्ता साहब के साथ में एक समझौता किया था जिसके तहत यदि वह फिल्म का निर्माण करेंगे तो उसमें गुरू दत्ता अभिनय करेंगे और यदि वह फिल्म का निर्माण करेंगे तो गुरू दत्ता उसमें अभिनय करेंगे। गुरू दत्ता के अंतिम समय तक भी यह करार बरकरार था। अपने बैनर के तहत बनने वाली दूसरी फिल्म बाजी की सफलता ने उन्होंने पलट कर नहीं देखा। उनकी अदा के दीवाने खुद पूर्व प्रधानमंत्री पंडित नेहरू भी थे।
भारत सरकार ने उन्हें 2001 में पद्म विभूषण और 2002 में दादा साहब फालके पुरस्कार से उन्हें नवाजा था। मौजूदा समय में वह अपनी फिल्म चार्जशीट को लेकर चर्चा में थे।
लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से इंग्लिश लिटरेचर से स्नातक करने वाले देव आनंद ने चालीस के दशक में मुंबई आकर मिलिट्री सेंसर आफिस में भी काम किया था। इसके बाद उन्होंने आल इंडिया रेडियो का रुख किया। 1941 में अपनी पहली फिल्म हम एक हैं से शुरुआत करने वाले देव आनंद ने प्रेम पुजारी, गाईड, हरे रामा हरे कृष्णा, बम्बई का बाबू, तेरे घर के सामने समेत अनेक सफल फिल्में दीं। आज उनके निधन से पूरा बालीवुड गमगीन है। उनके जाने से हिंदी सिनेमा में एक युग का अंत हो गया। 
मैनपुरी के सभी सिने प्रेमियों की ओर से देव साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि ! 
 
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Posted by पर दिसम्बर 4, 2011 में बिना श्रेणी

 

ब्लॉगर पवन कुमार जी के पैतृक आवास में चोरी

आईएएस अधिकारी और जाने माने ब्लॉगर श्री पवन कुमार जी के पैतृक आवास में सो रहे परिजनों को एक कमरे में बंद कर चोरों ने नगदी, सोने चांदी के आभूषण चुरा लिए। चोरों की आहट पर मकान के नीचे के कमरे में सो रहे युवक के जागने पर चोर भाग गए। आईएएस अधिकारी के पैतृक आवास से चोरी की जानकारी होते ही पुलिस हरकत में आ गई। पवन जी के छोटे भाई हृदेश सिंह ने चोरी की तहरीर थाने में दे दी है।
थाना कोतवाली के राजा का बाग निवासी पवन कुमार सिंह नोएडा में सीडीओ के पद पर तैनात हैं। उनके परिवार के लोग राजा का बाग में निवास करते हैं। उनके आवास में पिछले दिनों निर्माण कार्य करने के लिए मजदूरों को लगाया गया था। मंगलवार की रात पवन जी के परिवार के लोग घर में सो रहे थे। रात दो बजे के बाद अज्ञात चोर घर में प्रवेश कर गए। चोरों ने मकान के ऊपरी हिस्से में बने उस कमरे की कुंडी बाहर से बंद कर दी। जिसमें परिवार की महिलायें तथा पुरुष लेटे थे। चोरों ने दूसरे कमरे का ताला तोड़कर प्रवेश कर लिया।
बताते हैं कि इस कमरे में रखी एक अलमारी का चोरों ने किसी तरह ताला खोल लिया। अलमारी में रखी 40 हजार रुपये की नगदी, सोने चांदी के आभूषण चुरा लिए। परिजनों के अनुसार चोर लगभग दो लाख कीमत के आभूषण चुरा ले गए हैं। इसी बीच चोरों की आहट पाकर मकान के नीचे के कमरे में सो रहा पवन जी का छोटा  भाई श्यामकांत  जाग गया। वह मकान के ऊपरी हिस्से में आया तो चोर छत से कूदकर भाग गए। श्यामकांत ने बंद कमरे की कुंडी खोलकर परिजनों को बाहर निकाला। परिजनों ने चोरी की पुलिस को सूचना दे दी। पवन जी को भी परिजनों ने चोरी हो जाने की सूचना रात में ही फोन से दे दी। पवन  जी ने एस पी नितिन तिवारी को अपने आवास में चोरी हो जाने की सूचना दी। आईएएस के मकान में चोरी की जानकारी होते ही पुलिस में हड़कंप मच गया। सीओ सिटी आरके मिश्रा मौके पर आ गए। पुलिस ने परिजनों से भी चोरी के संबंध में जानकारी ली। परिजनों के बताए अनुसार पुलिस चोरी के शक में चार मजदूरों को हिरासत में लेकर पूछताछ की है। पवन जी के छोटे भाई हृदेश कुमार सिंह ने चोरी की रिपोर्ट दर्ज करा दी है।
 
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Posted by पर दिसम्बर 1, 2011 में बिना श्रेणी

 

उस्ताद सुलतान खान का निधन

जाने माने सारंगी वादक और शास्त्रीय गायक उस्ताद सुलतान खान का रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। खान 71 साल के थे और पिछले दो महीने से बीमार चल रहे थे। वे अपने पीछे परिवार में संगीत की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए पुत्र साबिर खान को छोड़ गए हैं। उस्ताद खान को वर्ष 2010 में देश के प्रतिष्ठित पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया था।
मीठे साजों में शुमार सारंगी के फनकार खान ने ‘पिया बसंती रे’ और ‘अलबेला सजन आयो रे’ जैसे मशहूर गीतों में भी अपनी आवाज दी। उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि पद्म भूषण से सम्मानित खान जोधपुर के सारंगी वादकों के परिवार से ताल्लुक रखते थे। वह पिछले कुछ समय से डायलिसिस पर थे। उन्हें कल जोधपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा।
सारंगी वादन के क्षेत्र में नई जान फूंकने का श्रेय खान को ही जाता है। उनकी अपने वाद्य पर गजब की पकड़ थी लेकिन उनकी आवाज भी उतनी ही सुरीली थी। वह 11 वर्ष की आयु में ही पंडित रविशंकर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुति दे चुके थे। यह पेशकश उन्होंने वर्ष 1974 में जॉर्ज हैरीसन के ‘डार्क हॉर्स व‌र्ल्ड टूर’ में दी थी। खान राजस्थान के सारंगी वादकों के परिवार में जन्मे। शुरुआत में उन्होंने अपने पिता उस्ताद गुलाम खान से तालीम ली। बाद में उन्होंने इंदौर घराने के जाने माने शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से संगीत के हुनर सीखे।
खुद को सारंगी वादक के तौर पर स्थापित करने के बाद उस्ताद सुल्तान खान ने लता मंगेशकर, खय्याम, संजय लीला भंसाली जैसी फिल्म जगत की हस्तियों और पश्चिमी देशों के संगीतकारों के साथ काम किया।
फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ में आपका गया हुआ ‘अलबेला सजन घर आयो री’ बेहद मकबूल हुआ था … इस गाने में आपने शंकर महादेवन के साथ जुगलबंदी की थी !
लीजिये पेश है उनका एक ओर बेहद मकबूल गीत …
“कटे नाही रात मोरी … पिया तोरे कारण …”  

मैनपुरी के सभी संगीत प्रेमियों की ओर से खान साहब को शत शत नमन और विनम्र श्रद्धांजलि !
 
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Posted by पर नवम्बर 27, 2011 में बिना श्रेणी

 

२६/११ की तीसरी बरसी – बस इतना याद रहे … एक साथी और भी था …

२६/११ के सभी अमर शहीदों को सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से शत शत नमन !
 
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Posted by पर नवम्बर 26, 2011 में बिना श्रेणी

 

शेर ऐ मैसूर के जन्मदिन पर विशेष

मैसूर के शेर’ के नाम से मशहूर और कई बार अंग्रेजों को धूल चटा देने वाले टीपू सुल्तान राकेट के अविष्कारक तथा कुशल योजनाकार भी थे।
उन्होंने अपने शासनकाल में कई सड़कों का निर्माण कराया और सिंचाई व्यवस्था के भी पुख्ता इंतजाम किए। टीपू ने एक बांध की नींव भी रखी थी। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने टीपू सुल्तान को राकेट का अविष्कारक बताया था। [देवनहल्ली वर्तमान में कर्नाटक का कोलर जिला] में 20 नवम्बर 1750 को जन्मे टीपू सुल्तान हैदर अली के पहले पुत्र थे।
इतिहासकार जीके भगत के अनुसार बहादुर और कुशल रणनीतिकार टीपू सुल्तान अपने जीते जी कभी भी ईस्ट इंडिया साम्राज्य के सामने नहीं झुके और फिरंगियों से जमकर लोहा लिया। मैसूर की दूसरी लड़ाई में अंग्रेजों को खदेड़ने में उन्होंने अपने पिता हैदर अली की काफी मदद की।
टीपू ने अपनी बहादुरी के चलते अंग्रेजों ही नहीं, बल्कि निजामों को भी धूल चटाई। अपनी हार से बौखलाए हैदराबाद के निजाम ने टीपू से गद्दारी की और अंग्रेजों से मिल गया।
मैसूर की तीसरी लड़ाई में अंग्रेज जब टीपू को नहीं हरा पाए तो उन्होंने मैसूर के इस शेर के साथ मेंगलूर संधि के नाम से एक सममझौता कर लिया, लेकिन फिरंगी धोखेबाज निकले। ईस्ट इंडिया कंपनी ने हैदराबाद के निजाम के साथ मिलकर चौथी बार टीपू पर जबर्दस्त हमला बोल दिया और आखिरकार 4 मई 1799 को श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए टीपू शहीद हो गए।
मैसूर के इस शेर की सबसे बड़ी ताकत उनकी रॉकेट सेना थी। रॉकेटों के हमलों ने अंग्रेजों और निजामों को तितर-बितर कर दिया था। टीपू की शहादत के बाद अंग्रेज रंगपट्टनम से निशानी के तौर पर दो रॉकेटों को ब्रिटेन स्थित वूलविच म्यूजियम आर्टिलरी गैलरी में प्रदर्शनी के लिए ले गए।
 


भारत माता के इस ‘शेर’ को सभी मैनपुरी वासीयों का शत शत नमन !
 
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Posted by पर नवम्बर 20, 2011 में बिना श्रेणी

 

बाल दिवस के २ अलग अलग रूप

आज बाल दिवस है … पर इतने सालों के बाद भी पूरे देश में … यह सामान रूप से नहीं मनाया जाता … २ चित्र दिखता हूँ आपको … अपनी बात सिद्ध करने के लिए …

भोपाल में रविवार, 13 नवंबर को बाल दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित कार्यक्रम में नन्हे बच्चों ने चाचा नेहरू को पुष्प अर्पित किए।

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के चक्रधरपुर में बाल दिवस की पूर्व संध्या पर ताश के 52 पत्तों में अपना भविष्य तलाशते बच्चे। 

       
साफ़ साफ़ समझ में आता है कि इस में किसकी गलती है … एक जगह सारे तामझाम किये जाते है इस सालाना दिखावे के लिए वही दूसरी किसको भी इतनी फुर्सत नहीं है कि थोडा सा दिखावा ही कर जाता इन बच्चो के सामने …
 
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Posted by पर नवम्बर 14, 2011 में बिना श्रेणी

 

आज के ज़माने की A B C D

आज के ज़माने की A B C D
आज अमित कुमार श्रीवास्तव जी की फेसबुक प्रोफाइल पर यह चित्र देखा तो सोचा आप सब को भी यहाँ दिखा दूँ  … आपका भी नया ज्ञान मिल जाए और हमारी भी एक पोस्ट तैयार हो जाए … है कि नहीं ???
 
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Posted by पर नवम्बर 10, 2011 में बिना श्रेणी

 

हमारा नया रूप

लीजिये साहब पेश है हमारा नया अवतार एक कार्टून के रूप में … सुरेश शर्मा जी कार्टूनिस्ट और उनके पुत्र सैम ने अपना जादू चला हमारा रूप बदला है … आप भी देखिये और अपनी अपनी राय दीजिये …
 
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Posted by पर नवम्बर 8, 2011 में बिना श्रेणी