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Category Archives: सफलता

सुखोई में उड़ान भर राष्ट्रपति ने रचा इतिहास !!

राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने बुधवार को सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान से उड़ान भर कर अपने नाम एक रिकॉर्ड दर्ज करा लिया। रूस निर्मित सुखोई में 30 मिनट की उड़ान भर कर प्रतिभा ऐसा करने वाली किसी भी देश की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष बन गई हैं।

उड़ान के सफलतापूर्वक संपन्न होने पर लोहेगांव वायुसैनिक अड्डे पर उतरने के बाद प्रतिभा ने पायलट विंग कमांडर एस साजन से हाथ मिलाया और सुविधाजनक उड़ान के लिए उनकी सराहना की।

इसके साथ ही चौहत्तर वर्षीय प्रतिभा ने किसी भी युद्धक विमान में 30 मिनट की यात्रा करने वाली सबसे उम्रदराज महिला का रिकॉर्ड भी अपने नाम कर लिया है। अड्डे पर उन्होंने पायलट,च्उच्चाधिकारियों और विमान के तकनीकी स्टॉफ के साथ फोटो खिंचवाए। प्रतिभा के साथ जाने वाले पायलट साजन के पास 3,200 घंटों की उड़ान का अनुभव है।

उड़ान से उतरने के बाद राष्ट्रपति को विश्राम गृह ले जाया गया, जहां उनका चिकित्सीय परीक्षण किया गया। उड़ान भरने के पूर्व राष्ट्रपति को आपातकालीन निर्गमन प्रक्रिया और सुखोई-30 की उड़ान के विभिन्न पहलुओं के बारे में 30 स्क्वॉड्रन ‘राइनोज’ ने संक्षिप्त जानकारी दी।

सुखोई में उड़ान भरने वाली प्रतिभा देश की दूसरी राष्ट्रपति हैं। इसके पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने लोहेगांव से ही इसमें उड़ान भरी थी। कलाम की 30 मिनट की उड़ान की गति सुपरसोनिक गति से थोड़ी ही कम थी। सह पायलट की सीट पर बैठीं प्रतिभा ने इसके लिए विशेष ‘जी-सूट’ पहना, जो अत्यधिक गति के दौरान गुरुत्वाकर्षण विरोधी प्रभाव से बचाता है। भारत का अत्याधुनिक लड़ाकू विमान सुखोई आठ टन तक वजनी युद्ध सामग्री लेकर एक बार के ईंधन में 3,000 किमी तक की दूरी तय कर सकता है। एक बार हवाई ईधन भर कर यह विमान 5,000 किमी तक की दूरी तय कर सकता है।

सशस्त्र बलों की मुखिया राष्ट्रपति को ले जा रहे विमान के साथ दो और सुखोई विमानों ने उड़ान भरी। लड़ाकू सैनिकों की वेशभूषा और हेलमेट पहने हुईं प्रतिभा का कॉकपिट में दाखिल होने के पूर्व भव्य स्वागत किया गया।

विमान को विंग कमांडर साजन ने 0.9 माच की सबसोनिक गति से उड़ाया, जो 1,000 किमी प्रति घंटा की गति से थोड़ी कम थी। सुपरसोनिक गति का स्तर एक माच :1,236 किमी प्रति घंटा: से शुरू होता है। उड़ान के पूर्व प्रतिभा का चिकित्सीय परीक्षण किया गया, जिसमें फिट साबित होने के बाद उन्हें उड़ान के लिए हरी झंडी मिली।

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सचिन बने 30 हजारी

रिकार्डो के बादशाह सचिन तेंदुलकर ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 20 बरस पूरे करने के चंद दिन बाद शुक्रवार को श्रीलंका के खिलाफ पहले क्रिकेट टेस्ट में अपने कुल अंतरराष्ट्रीय रनों की संख्या 30 हजार तक पहुंचाकर एक नया विश्व रिकार्ड बनाया, जिसे तोड़ना किसी भी बल्लेबाज के लिए आसान नहीं होगा।

तेंदुलकर ने शुक्रवार को अहमदाबाद में भारत की दूसरी पारी में चनाका वेलेगेदारा की गेंद को डीप स्क्वायर लेग में एक रन के लिए खेलकर जैसे ही अपने रनों की संख्या को 35 तक पहुंचाया तो वह अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में 30,000 रन पूरे करने वाले पहले बल्लेबाज बन गए।

मास्टर ब्लास्टर ने 436 एकदिवसीय मैचों में 44.5 की औसत के साथ 17,178 रन बनाए हैं, जबकि वेलेगेदारा की गेंद पर एक रन के साथ टेस्ट मैचों में उनके रनों की संख्या 12,812 तक पहुंच गई। मुंबई के इस बल्लेबाज ने इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एकमात्र ट्वेंटी-20 मैच में 10 रन की पारी खेली थी और क्रिकेट के इन तीनों प्रारूपों में उनकी कुल [17178, 12812, और 10] रन संख्या अब 30 हजार हो गई है।

तेंदुलकर के रिकार्ड की बराबरी करना किसी भी बल्लेबाज के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय रनों की सूची में मास्टर ब्लास्टर के बाद जिस बल्लेबाज का नंबर आता है वह रिकी पोंटिंग हैं और आस्ट्रेलियाई कप्तान 24,057 रनों के साथ भारतीय दिग्गज से काफी पीछे हैं।

तेंदुलकर ने एकदिवसीय क्रिकेट में रिकार्ड 45 शतक और 91 अर्धशतक के साथ 44.5 की औसत से रन बनाए हैं, जबकि टेस्ट मैचों में भी उन्होंने रिकार्ड 42 शतक और 53 अर्धशतक के साथ 54 से अधिक की बेजोड़ औसत के साथ रन बटोरे हैं। उनके नाम अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में रिकार्ड 87 शतक [45 एकदिवसीय और 42 टेस्ट] शतक हैं।

इस मैच से पहले तेंदुलकर के नाम 596 अंतरराष्ट्रीय मैचों में 29,961 रन दर्ज थे और उन्होंने तीस हजारी बनने के लिए 39 रन रन की दरकार थी। वह पहली पारी में केवल चार रन बनाने के बाद अपनी तीसरी गेंद पर ही वेलेगेदारा का शिकार बनकर पवेलियन लौट गए थे, लेकिन उन्होंने दूसरी पारी में यह उपलब्धि हासिल कर ली।

तेंदुलकर और पोंटिंग के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सर्वाधिक रन बनाने वालों की सूची में संन्यास ले चुके वेस्टइंडीज के महान बल्लेबाज ब्रायन लारा का नाम आता है, जिन्होंने 430 मैचों में 46.28 की औसत से 22,358 रन बनाए हैं।

मौजूदा टेस्ट में 177 रन बनाकर भारत की पहली पारी को ढहने से बचाने वाले राहुल द्रविड़ 473 मैचों में 45।06 की औसत से 21588 रन बनाकर चौथे, जबकि दक्षिण अफ्रीका के आलराउंडर जाक कैलिस 436 मैचों में 49.11 की औसत के साथ 20,974 रन जोड़कर सर्वाधिक अंतरराष्ट्रीय रन बनाने वाले खिलाड़ियों की सूची में पांचवें स्थान पर हैं।

मैनपुरी जनपद के सभी खेल प्रेमियों की ओर से ‘रिकार्डो के बादशाह’ सचिन तेंदुलकर कों बहुत बहुत बधाइयाँ और आगे आने वाले समय के लिए शुभकामनाएं !

 

अब सभी समझ पाएंगे काग की भाषा!

पशु-पक्षियों की बोली में भी कोई न कोई संदेश छिपा होता है। प्राचीन काल में लोग पशु-पक्षियों की भाषा पर भविष्यवाणी करते थे जो सटीक बैठती थी। ऐसी ही एक हस्तलिखित पांडुलिपि शिमला के पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर को मिली है जिसमें कौव्वे की कांव-कांव का रहस्य छिपा है।

टांकरी लिपि में करीब दो सौ पृष्ठ के इस ग्रंथ का नाम है ‘काग भाषा’। यदि रिसोर्स सेंटर इसका अनुवाद करवाता है तो छिपे रहस्य का भी पता चल सकेगा।

तीन सौ साल पुराना, दो सौ पन्नों का यह ग्रंथ शिमला जिले से मिला है जिसमें कौव्वे की बोली से संबंधित जानकारी है। शाम, सुबह या दोपहर को कौव्वे की कांव-कांव का अर्थ क्या होता है,पुस्तक में यह जानकारी है। कौव्वा किस घर के किस दिशा में बैठा है, किस दिशा में मुंह है। इन रहस्यों से पर्दा इसके अनुवाद के बाद ही उठेगा।

रिसोर्स सेंटर में सैकड़ों साल पुराने रजवाड़ाशाही का इतिहास के अलावा आयुर्वेद, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र और यंत्र के अलावा धार्मिक ग्रंथ भी शामिल हैं। यह पांडुलिपियां विभिन्न भाषाओं मसलन पाउची, फारसी, पंडवाणी, चंदवाणी, ब्रह्माी, शारदा, भोटी, भटाक्षरी, संस्कृत, टांकरी, देवनागरी आदि लिपियों में हैं। केंद्रीय पांडुलिपि मिशन ने हिमाचल रिसोर्स सेंटर को पांडुलिपि तलाश अभियान में अव्वल माना है।

सैकड़ों साल पहले जब पुस्तक प्रकाशित करने के संसाधन कम थे तो लोग हाथों से लिखा करते थे। इसमें धार्मिक साहित्य के अलावा ज्योतिष, आयुर्वेद, नाड़ी शास्त्र, तंत्र-मंत्र-यंत्र, इतिहास, काल और घटनाएं होती थी। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने देश में बिखरी इन दुर्लभ पांडुलिपियों को एकत्रित करने के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन की शुरूआत की। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के तहत हिमाचल भाषा, संस्कृति एवं कला अकादमी को 2005 में रिसोर्स सेंटर घोषित किया गया है।

रिसोर्स सेंटर का कार्य हिमाचल में पांडुलिपियों को ढूंढ़ना, उन्हें संरक्षित करना तथा उसमें छिपे रहस्य को जनता के सामने लाना था। रिसोर्स सेंटर को अभी तक प्रदेश के विभिन्न कोने से 44,642 पांडुलिपियां मिली हैं जो अब ऑनलाइन हैं जबकि 600 के करीब पांडुलिपियां रिसोर्स सेंटर में हैं।

गौरतलब है कि इस भाषा के ज्ञाता बहुत कम ही रह गए हैं। इसलिए रिसोर्स सेंटर ने इसके लिए गुरु-शिष्य परंपरा भी शुरू की है। अधिकतर पांडुलिपियां तंत्र-मंत्र, आयुर्वेद, ज्योतिष, इतिहास और धर्मग्रंथ से संबंधित पुस्तकें मिल रही हैं।

रिसोर्स सेंटर का कहना है कि सबसे अधिक पांडुलिपियां लाहुल-स्पीति में मिल रही हैं। वहां अभी 3038 पांडुलिपियों का पता चला है। यहां मोनेस्ट्री से संबंधित दस्तावेज ज्यादा हैं। अभी तक टांकरी लिपि में पांच शिष्य गुरु हरिकृष्ण मुरारी से यह लिपि सीख रहे हैं। यह सेंटर कांगड़ा के शाहपुर में खोला गया है। केंद्र सरकार से सिरमौर में पाउची लिपि सिखाने के लिए सेंटर खोलने की अनुमति मिल चुकी है।

पांडुलिपि रिसोर्स सेंटर के कोर्डिनेटर बीआर जसवाल कहते हैं कि कुछ पांडुलिपियों का अनुवाद किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हिमाचल के कोने-कोने में प्राचीन पांडुलिपियां पड़ी हैं, जिनमें अकूत ज्ञान का भंडार छुपा है। पांडुलिपि के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए समय-समय पर सेमीनार गोष्ठियों का आयोजन किया जाता है।

पांडुलिपियों के संरक्षण के लिए अलग से सेंटर भी स्थापित किया गया है जहां इन पर केमिकल लगाकर इन्हें संरक्षित किया जाता है। पांडुलिपियों को उपचारात्मक और सुरक्षात्मक उपाय किए जाते हैं। धुएं, फंगस, कीटों का असर नहीं रहता। इसके लिए पैराडाइ क्लोरोवैंजीन, थाइमोल, ऐसीटोन, मीथेन आयल, बेरीक हाइड्राओक्साइड, अमोनिया आदि रसायनों का प्रयोग कर संरक्षित किया जाता है।

खजाने में क्या-क्या है ?

हिमाचल संस्कृति एवं भाषा अकादमी में अब तक जो पांडुलिपियां मिली हैं उनमें प्रमुख कांगड़ा में 600 साल पुराना आयुर्वेद से संबंधित कराड़ा सूत्र है जो भोटी लिपि में लिखा गया है। इसके अलावा कहलूर-हंडूर, बिलासपुर-नालागढ़, सिरमौर रियासत का इतिहास [उर्दू], कटोच वंश का इतिहास, कनावार जिसमें किन्नौर का इतिहास, राजघराने, नूरपूर पठानिया, पठानिया वंश का इतिहास, बृजभाषा में रसविलास, सिरमौर सांचा [पाउची में], रामपुर के ढलोग से मंत्र-तंत्र, राजगढ़ से 300 साला पुराना इतिहास, 12वीं शताब्दी में राजस्थान के पंडित रानी के दहेज में आए थे उनके ग्रंथ भी मिले हैं जो पाउची में हैं।

पांगी में चस्क भटोरी नामक एक पांडुलिपि ऐसी मिली हैं जिसका वजन 18 किलो बताया जा रहा है। एक अन्य पांडुलिपि लाहुल-स्पीति में भोटी भाषा में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। जपुजी साहब, महाभारत, आयुर्वेद, स्कंद पुराण, कुर्सीनामा, राजाओं के वनाधिकार, कुरान तक की प्राचीन पांडुलिपियां मिली हैं।

 

मोहिंदर अमरनाथ कों वर्ष 2008-09 का ‘लाइफटाइम अचीवमेंट’


भारत की 1983 विश्व कप जीत के नायक पूर्व आलराउंडर मोहिंदर अमरनाथ को बीसीसीआई ने वर्ष 2008-09 के लिए सीके नायडू ‘लाइ फटाइम अचीवमेंट’ पुरस्कार देने की घोषणा की।

अमरनाथ को बीसीसीआई के समारोह में यह पुरस्कार दिया जाएगा जिसमें उन्हें एक ट्राफी और 15 लाख रुपये मिलेंगे। अमरनाथ ने 1969 से 1988 तक चले अपने करियर में 69 टेस्ट मैच में 4378 रन बनाए। उन्होंने इसके अलावा 85 एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों में 1924 रन भी जोड़े। उन्हें 1983 विश्व कप के सेमीफाइनल और फाइनल में मैन आफ द मैच चुना गया था।

अमरनाथ ने 1969 में बिल लारी की अगुवाई वाली आस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ टेस्ट मैचों में पदार्पण किया। वह 1981-82 में रणजी खिताब जीतने वाली दिल्ली टीम के कप्तान भी थे। स्वतंत्र भारत के पहले टेस्ट कप्तान और मोहिंदर के पिता लाला अमरनाथ 1994 में शुरू हुए इस पुरस्कार को हासिल करने वाले पहले क्रिकेटर थे। उन्होंने बांग्लादेश और मोरक्को की राष्ट्रीय टीमों के अलावा राजस्थान की रणजी ट्राफी टीम को कोचिंग भी दी।

आज भी अमरनाथ क्रिकेट कों एक कमेंटेटर के रूप में अपना योगदान दे रहे है |

मैनपुरी जनपद के सभी क्रिकेट प्रेमियों की ओर से मोहिंदर अमरनाथ जी कों बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

 

गुलजार को लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड

ऑस्कर विजेता गुलजार को सिनेमा जगत में उनके योगदान के लिए 11वें ओसियान सिने फिल्म समारोह में लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2009 से सम्मानित किया जाएगा। गुलजार को यह पुरस्कार राजधानी में 24 अकतूबर को उद्घाटन समारोह में दिया जाएगा।
ओसियान की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया कि यह पुरस्कार गुलजार की रचनात्मकता और मनोरंजन जगत को उनके योगदान का सम्मान है जो सांस्कृतिक भाषाई और अन्य सीमाओं से परे है।
विमल राय की फिल्म बंदिनी के गीत मोरा गोरा रंग लई ले से प्रसिद्धि पाने वाले गुलजार मुसाफिर हूं यारो (परिचय), तेरे बिना जिन्दगी से कोई (आंधी), मेरा कुछ सामान (इजाजत) और तुझसे नाराज नहीं जिन्दगी (मासूम) जैसे यादगार गीत लिखने के लिए जाने जाते हैं।
हाल ही में धूम मचाने वाले उनके गीतों में कजरारे अमिताभ बच्चन अभिनीत बंटी और बबली बीड़ी जलाई ले (ओमकारा) और स्लमडॉग मिलेनियर का गीत जय हो शामिल है जिसने इस साल का ऑस्कर जीता।
गुलजार ने आंधी, परिचय, मौसम और माचिस जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया है। गुलजार सिनेमा हस्ती ही नहीं, बल्कि जाने माने कवि भी हैं जिन्हें 2002 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है।
पिछले साल लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार वरिष्ठ फिल्म निर्माता मृणाल सेन को मिला था।

सभी मैनपुरी वासीयों की ओर से गुलज़ार साहब को बहुत बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं !

 

रमेश के कांसे ने विश्व कुश्ती में रचा इतिहास – 42 साल बाद भारत को पहला पदक दिलाया

भारतीय पहलवान रमेश कुमार ने डेनमार्क के हेरनिंग में चल रही विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के 74 किलो फ्री स्टाइल वर्ग में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रच दिया। बीजिंग ओलंपिक में सुशील कुमार के कांस्य पदक के बाद कुश्ती में किसी बड़ी प्रतियोगिता में भारत का यह पहला पदक है।
हरियाणा के सोनीपत के पास छोटे से गांव पुरखास के इस पहलवान ने वह कर दिखाया जो ओलंपिक कांस्य पदक विजेता पहलवान सुशील कुमार यहां नहीं कर सके। उन्होंने इस प्रतिष्ठित स्पर्धा में 42 साल बाद भारत को पहला पदक दिलाया। विश्व कुश्ती के इतिहास में भारत का यह केवल चौथा पदक है। इससे पहले 1967 में नई दिल्ली में हुई प्रतियोगिता में विशंबर ने रजत और 1961 में जापान में आयोजित प्रतियोगिता में उदय चंद ने कांस्य और महिला वर्ग में अलका तोमर में 2006 में चीन में कांस्य पदक जीता था।
रमेश ने मोलडोवा के अलेक्जेंडर बर्का को तकनीकी अंकों के आधार पर हराया। रेपेचेज राउंड के बाद स्कोर 7-7 से बराबर था। रमेश ने निराशाजनक शुरुआत की और 0-3 से पिछड़ गए। दूसरे सत्र में शानदार वापसी करते हुए उसने दो अंक बनाए और आखिरी सत्र में पांच अंक लेकर जीत दर्ज की। इससे पहले रमेश ने अमेरिका के डस्टिन श्लाटेर को 3-2 से हराया था। ब्रिटेन के माइकल ग्रंडी को 4-2 और बुल्गारिया के किरिल तेर्जिव को 7-4 से हराकर वह सेमीफाइनल में पहुंचे थे।
पिछले नौ साल से उत्तर रेलवे में कार्यरत रमेश के कोच और कुश्ती के सरकारी पर्यवेक्षक नरेश कुमार ने बताया कि एक ही दिन में फाइनल तक के मुकाबले होने से हमारे पहलवानों को नुकसान उठाना पड़ा है और यही मुकाबला पहले की तरह दो या दिन तक चलता तो रमेश के रजत या स्वर्ण जीतने के ज्यादा मौके होते। नरेश ने कहा कि हम इस मामले को अंतरराष्ट्रीय कुश्ती महासंघ तक ले जाएंगे क्योंकि एक वजन वर्ग के फाइनल तक के मुकाबले एक ही दिन होने से पहलवानों को विश्राम या अपनी रणनीति तय करने का मौका नहीं मिल पाता है। यही मुकाबला अगर मुक्केबाजी की तरह दो या तक चले तो हमारे पहलवानों को ज्यादा लाभ हो सकता है।
सेमीफाइनल में अजरबैजान के चामसुलवारा सी के हाथों 0-5 से हारकर हालांकि वह स्वर्ण पदक की दौड़ से बाहर हो गए। इस वर्ग में स्वर्ण पदक रूस के डेनिस टी ने जीता। इससे पहले ओलंपिक कांस्य पदक विजेता सुशील कुमार वह कारनामा करने से चूक गए जो विश्व मुक्केबाजी में विजेंदर सिंह ने कर दिखाया। सुशील को 66 किलो फ्रीस्टाइल के कांस्य पदक प्ले आफ मैच में पराजय का सामना करना पड़ा।

मैनपुरी के सभी खेल प्रेमियों की ओर से पहलवान रमेश कुमार को ‘इतिहास’ रचने की बहुत बहुत बधाई |

 
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Posted by पर सितम्बर 24, 2009 में सफलता

 

जय हो – ओशनसैट-2 का सफल प्रक्षेपण, कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित

भारत ने अपने 16वें दूर-संवेदी उपग्रह ओशनसैट-2 और अन्य छह छोटे यूरोपीय उपग्रहों को बुधवार को 11.51 बजे धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान [पीएसएलवी-14] की सहायता से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] का भरोसेमंद स्वदेशी राकेट पीएसएलवी [पोलर सेटेलाइट लांच व्हीकल] बुधवार दोपहर 11:51 बजे ओशनसेट को लेकर रवाना हुआ। यह राकेट अपने साथ सात उपग्रहों को एक साथ लेकर रवाना हुआ है जिस में, हिंद महासागर में होने वाली हलचलों पर नजर रखने के लिए भारतीय उपग्रह ओशनसैट-2 भी अपने मिशन पर रवाना हुआ है ।

ओशनसैट-2 सहित सात उपग्रहों के प्रक्षेपण के 20 मिनट के अंदर इन्हें कक्षा में सफलता पूर्वक स्थापित कर दिया गया। राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने छह यूरोपीय नैनो सेटेलाइट के साथ ओशनसेट-2 के सफल प्रक्षेपण के लिए इसरो के दल को बधाई दी।
इसरो के अध्यक्ष जी. माधवन नायर ने छह नैनो सेटेलाइट के साथ ओशनसैट-2 के प्रक्षेपण को शानदार उपलब्धि करार दिया। 51 घंटे की उल्टी गिनती के बाद 44.4 मीटर लंबे और चार चरण वाले अंतरिक्षयान पीएसएलवी सी सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष के अपने सफर पर रवाना हुआ। उसने एक के बाद एक सभी उपग्रह कक्षा में स्थापित कर दिए।
आसमान साफ था और बुधवार सुबह 11 बज कर 51 मिनट पर जैसे ही पीएसएलवी ने आन बान के साथ आकाश का रुख किया वैज्ञानिकों में हर्षोल्लास की लहर दौड़ गई। उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी इस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी बनने के लिए वहां मौजूद थे।
ओशनसैट-2 देश का 16वां दूरसंवेदी उपग्रह है और यह मछली पकड़ने के संभावित क्षेत्रों की पहचान करने के साथ ही समुद्र की स्थिति की भविष्यवाणी करेगा और तटीय क्षेत्रों के अध्ययन में मदद करेगा। यह मौसम की भविष्यवाणी और जलवायु अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण सूचनाएं देगा। सफल प्रक्षेपण के तुरंत बाद अभियान केंद्र में मौजूद अंसारी और वरिष्ठ वैज्ञानिक एम जी के मेनन ने इसरो के वैज्ञानिकों को बधाई दी। इसरो अध्यक्ष जी माधवन नायर ने वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए इसे एक आदर्श और सटीक प्रक्षेपण बताया।
नायर ने इस शानदार उपलब्धि के लिए वैज्ञानिकों को मुबारकबाद देते हुए कहा इस प्रक्षेपण ने एक बार फिर हमारी क्षमता साबित कर दी है। यह समूहकार्य की एक शानदार मिसाल है साथ ही पीएसएलवी प्रक्षेपणयान की परिपक्वता साबित हो गई है।
इशरो के अध्यक्ष नायर ने कहा यह एक शानदार उपलब्धि है। हमने एक बार फिर साबित कर दिया है कि हम सटीक तरीके से काम कर सकते हैं। यह बात उन्होंने इसरो के राकेट पीएसएलवी द्वारा 20 मिनट की अवधि में सात उपग्रहों को कक्षा में स्थापित करने के चंद मिनट बाद कही।
उन्होंने कहा कि अभियान की सफलता पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सराहना की है। प्रक्षेपण वाहन के प्रभारी वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक जार्ज कोशी ने कहा कि जब भी हमारे समक्ष कठिनाई आती है, इसरो और मजबूत बनकर उभरता है।
इसरो के टेलीमेट्री, ट्रेकिंग और कमांड नेटवर्क निदेशक एस. के. शिवकुमार ने कहा कि मारिशस स्थित कमांड सेंटर ने प्रक्षेपण वाहन से अलग होते ही ओशनसेट-2 से निकलने वाले सिग्नलों को पकड़ा।
विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र के निदेशक के राधाकृष्णन ने कहा कि सात उपग्रहों के सफल प्रक्षेपण ने पीएसएलवी की परिपक्वता को एक बार भी साबित किया है। उन्होंने कहा कि यह पीएसएलवी का लगातार 15वां सफल प्रक्षेपण था।

 
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Posted by पर सितम्बर 23, 2009 में ओशनसैट-2, सफलता, [इसरो]

 

ब्लॉगिंग ने पूरे किए १० साल |


यदि अंग्रेजी, हिंदी और अन्य भाषाओं में ऑनलाइन अभिव्यक्ति के माध्यमों की बात की जाए तो जिस एक शब्द पर सबकी निगाहें रुकती है, वह ब्लॉग है। वर्ष 1999 में पीटर मर्होल्ज नाम के एक व्यक्ति ने इस शब्द का इजाद किया था।

पीटर ने ‘वी ब्लॉग’ के नाम से एक निजी वेबसाइट को ब्लॉग की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया था और बाद में इसमें से ‘वी’ को हटा दिया। यही वजह है कि वर्ष 2009 इस शुरुआत के 10 साल पूरे होने का गवाह बन रहा है।

वर्ष 1999 ब्लॉग जगत के लिए कई अर्थो में अहम है। इसी साल सैन फ्रांसिस्को की पियारा लैब्स ने ‘वी ब्लॉग’ से आगे बढ़कर एक से अधिक लोगों को लिखने की सुविधा देना शुरू किया। जब लोगों की संख्या बढ़ी तो मार्च 1999 में ब्रैड फिजपेट्रिक ने ‘लाइव जर्नल’ का निर्माण किया, जो ब्लॉगरों को होस्टिंग की सुविधा देती थी।

इन दस सालों में ब्लॉग ने पूरी दुनिया में हर खासो आम को चपेट में ले लिया। वर्ष 2003 में जब ब्लॉग शब्द चार साल का हुआ तो दो और बड़ी घटनाएं हुई, जिससे ब्लॉगिंग को व्यापक विस्तार मिल गया। इस संबंध में ‘विस्फोट डॉट कॉम’ ने टिप्पणी की है, ”इस साल ओपेन सोर्स ब्लॉगिंग प्लेटफार्म वर्डप्रेस का जन्म हुआ और पियारा लैब्स की ब्लॉगर को गूगल ने खरीद लिया।

‘विस्फोट डॉट कॉम’ ने टिप्पणी की, ”पियारा लैब्स के ब्लॉगर को खरीदने के बाद ब्लॉगस्पॉट को गूगल ने अपनी सेवाओं का हिस्सा बना लिया और दुनिया की उन सभी भाषाओं में ब्लॉ¨गग की सुविधा दे दी, जिसमें वह खोज सेवाएं प्रदान कर रहा है। उधर वर्डप्रेस ने ब्लॉगस्पॉट को कड़ी टक्कर दी और देखते-देखते वर्डप्रेस ब्लॉगिंग का सबसे बड़ा प्लेटफार्म बन गया।”

अभिव्यक्ति के इस मजबूत माध्यम से दुनिया भर में हर रोज बड़ी संख्या में लोग जुड़ते जा रहे है। ‘टेक्नारॉटी’ द्वारा वर्ष 2008 में जारी आंकड़ों के हिसाब से पूरी दुनिया में ब्लॉगरों की संख्या 13.3 करोड़ पहुंच गई है। भारत में लगभग 32 लाख लोग ब्लॉगिंग कर रहे है। हिंदी में भी ब्लॉग ने काफी तेजी से विकास किया है और वर्डप्रेस व जुमला नामक मुफ्त सॉफ्टवेयर के कारण बहुत सारे ब्लॉगर अपनी-अपनी वेबसाइट तैयार करने लगे है

इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की नई परिभाषा गढ़ रहे ब्लॉग जगत में लोगों को अपार संभावनाएं दिखती है। कहा जा रहा है कि यदि पिछले दस साल ब्लॉग के उत्थान के साल रहे है तो अगले दस साल ब्लॉग में बदलाव के साल होंगे।

 
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Posted by पर सितम्बर 21, 2009 में बुरा - भला, ब्लॉगिंग, सफलता

 

हिन्दी पत्रकारिता की अज़ीम-ओ -शान शख्सियत ”शशि शेखर”

सितम्बर का दिन मेरे लिए बेहद खुशी भरा रहा| इस दिन शशि शेखर जी को देश के सबसे बड़े मीडिया समूह ”हिंदुस्तान” का प्रधान संपादक बनाया गया| पत्रकारिता में हिंदुस्तान ग्रुप के नाम से पुरा भारत वाकिफ है | शशि जी को इस समूह के प्रधान संपादक बनाया जाना एक बड़ी बात है | हिंदुस्तान के संपादक बनाने के साथ ही शशि जी देश के शीर्ष संपादकों की कतार में आ गए हैं| हलाकि पत्रकारिता में शशि जी ख़ुद एक ब्रांड बन चुके हैं.ऐसे में उनका हिंदुस्तान में जाना उनके लिए उतना तो इंतना मायिने नही रखता जितना की हिंदुस्तान के लिए| हाँ, हिंदुस्तान ग्रुप ने उनकी रचनात्मकता को पहचाना इसके लिए वे लोग प्रशंसा के पात्र हैं| शशि जी की काबलियत ने हमेशा ही मुझे प्रभावित किया है|

मुझे याद है के उनको सबसे पहले ”इंडिया टुडे” मैगजीन के सम्पादकीय में पढ़ा था| गोया उस समय में ९ वीं क्लास था| सम्पादकीय का मजमून आयुध कारखानों में हो रहे विस्फोटों से था| ये विषय मेरी समझ से परे था| लाइब्रेरी में चंपक और नन्दन को खोजते समय ये मैगजीन मेरे हाथ आई थी| सम्पादकीय के नीचे शशि शेखर लिखा था| इस नाम ने मुझे बेहद आकर्षित किया,क्यूँ ये आज भी नही जनता…हाँ, इसके बाद उनके बारे में जानने का सिलसिला जरुर शुरू हो गया| बी. ए.में दाखिला लेने के बाद ही मैंने शोकिया “दैनिक जागरण”, मैनपुरी, में जाना शुरू कर दिया| पत्रकारिता के दौरान मुझे एक गोष्ठी में जाने का मौका मिला, ऑफिस के सामने ही गोष्ठी थी| गोष्ठी ख़त्म होने पर मेरे एक परचित ने दो वृद्ध दम्पति से मेरा तार्रुफ़ कराया….. श्री जगत प्रकाश चतुर्वेदी और श्रीमती किरण चतुर्वेदी| बताया गया के यही शशि जी के माता पिता हैं| मुझे बेहद खुशी हुयी| इस मुलाकात में मुझे मालूम हुआ की शशि जी मैनपुरी के हैं| उस समय शशि जी ”आज तक” में थे| इसमें कोई शक नही है, कि शशि जी ने इस जटिल दोर में भी हिन्दी पत्रकारिता को एक नया मकाम देने का काम किया है| वे बेहद खुद्दार और निडर पत्रकार हैं| शशि जी  मेरे अज़ीज़ पत्रकार इस लिए भी हैं क्यों कि उन्होंने बचपन से ही पत्रकार बनने की ठानी थी| इलाहाबाद में जब शशि जी छोटी क्लास में थे,उनका एक टेस्ट लिया गया, मास्टर जी ने उनसे पूछा कि बड़े होकर क्या बनना चाहते हो ? शशि जी का जवाब था कि बड़े होकर वे अखबार निकलेगें| इस पर मास्टर जी उनकी कापी पर लिखा कि “बच्चा मंदबुधि है|’‘ खैर, इस तरह के कई प्रसंग और संस्मरण उनके साथ जुड़े हैं| आगरा में जब “दैनिक आज” में वे आये तो उनके सामने कई मुश्किलें थी| इस अखबार के रेजिडेंट एडिटर बनने से पहले “आज” तीन बार बंद हों चूका था| बावजूद इसके उन्होंने काम शुरू किया और जल्द ही “आज” आगरा में सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला अखबार बन गया| कहने का मतलब है कि उन्होंने रेस में हारे घोडे पर दाव लगया, और अपनी काबलियत से उसे लोगो के सामने जीता कर दिखया| ये असली काबलियत और हौसला है| मेरी उनसे मुलाकात कुछ मिनटों की है, “अमर उजाला”, नोएडा के १० बाई १० के जबरदस्ती से बनाये गए एक ऑफिस में हाफ टीशर्ट में कम्पयूटर पर काम कर रहे थे, उनका चेहरा काम से थका था, बावजूद उन्होंने मुझे समय दिया| ये मेरे लिए किसी अहसान से काम नहीं है| मैं नौकरी मांगने उनके पास आया था| फ़ौरन मेरा बायो डाटा देख कर देहरादून उप संपादक बना कर जाने को कहा| पहली मुलाकात में इतनी इनायत मुझे किसी ने नहीं बख्शी| इसे उनकी दरियादिली कहूँ या जिन्दादिली,  मैं नहीं जनता, जो भी था दिल को छु गया| उनके बारे मैंने अक्सर सुना है वे बेहद मुडी किस्म के, पुराने टाईप के संपादक हैं..आदि-आदि ,लेकिन मुझे ऐसा बिलकुल नहीं लगा| उनकी खुद्दारी उनके चेहरे से साफ़ पढ़ी जा सकती है|

फिर ४ सितम्बर पर लोटते हैं, हलाकि मुझे २८ अगस्त को ही खबर हों गयी थी शशि जी ”हिंदुस्तान” में आ रहे हैं, फ़िर भी हिंदुस्तान के पहले पेज पर उनकी तस्वीर के साथ प्रधान संपादक बनने के खबर देखने पर बेहद ख़ुशी हुयी| मैंने अपने चैनल पर फ़ौरन ये खबर ब्रेक की| फिर मैंने इस पर एक खबर प्रसारित करने की सोची, मैंने अपने रिपोटर्स को शहर के तथाकथित प्रबुद्ध लोगों के पास इस उपलब्धि पर राय लेने के लिए भेजा, जिस खबर पर पूरा देश चर्चा कर रहा था मैनपुरी में उस खबर पर हल्की सी जुम्बिश भी नही थी!! मुझे बेहद दुःख हुआ! आख़िर इस मैनपुरी को हुआ क्या है? बरहाल “सत्यम परिवार” ने इस खुशी को पुरी शिद्दत से सेलिब्रेट किया| मुझे लगा की इस खबर पर कुछ नही तो जिले की मीडिया तो खुश होगी| जिस अख़बार में वो गए उस अख़बार ने भी जिले से एक सिंगल कॉलम समाचार नही लगाया!! मुझे इस बात का दुःख है, इस लिए इस दर्द को बयां कर रहा हूँ बाकी मेरा मकसद किसी की आलोचना करना नही है, ये मेरा अपना बुरा- भला अनुभव है…!!!

मेरी ओर से और मेरे चैनल और ब्लॉग की पूरी टीम की ओर से शशि जी को बहुत बहुत बधाईयां और शुभकामनाएं |

– हृदेशसिंह (प्रमुख्य संपादक, सत्यम न्यूज़ चैनल, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश)

 

जागरण की ख़बर में मैनपुरी के ब्लॉग ने बनाई जगह

आप सब के आर्शीवाद से उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर मैनपुरी के इस ब्लॉगर के ब्लॉग बुरा भला ने दैनिक जागरण की ख़बर में अपनी जगह बनाई है |
ख़बर यूँ तो दुखद है पर फ़िर भी एक गर्व की अनुभूति इस लिए हो रही है क्युकी ख़बर हिन्दी ब्लॉग जगत के विषय में है |

हिन्दी ब्लॉग जगत आज एक एसा खुला मंच होता जा रहा है जहाँ लोग अपनी बात अपने अपने ब्लॉग के जरिये रखते है और पुरजोर तरीके से रखते है | मैंने भी एक एसी ही कोशिश की है, इस आशा के साथ की हर कदम पर आप सब मेरे साथ खड़े है |

इसे एक बहुत बड़ी सफलता मानते हुए, आप सब को इसका भागीदार बनाता हूँ |

आईये सब को बता दे कि हिन्दी ब्लॉग जगत एक अटूट परिवार है |

जय हिंद !
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ज़रा यहाँ भी निगाह डाले :-बुरा भला ने जागरण की ख़बर में अपनी जगह बनाई है |

http://in.jagran.yahoo.com/news/national/politics/5_2_5767315.html

 
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Posted by पर सितम्बर 6, 2009 में सफलता