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Category Archives: यह है बुरा

बधाई हो जी बहुत बहुत बधाई – बोफोर्स केस बंद करने की अर्जी सीबीआई ने लगाई

बोफोर्स दलाली कांड को बंद करने के लिए सीबीआई ने शनिवार को दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में अर्जी दायर की। जांच एजेंसी ने मामले के मुख्य आरोपी इटली के व्यापारी ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ सबूत न होने और उसे प्रत्यर्पित करने की सभी कोशिशें नाकाम रहने के बाद यह फैसला किया।
सीबीआई ने अपनी अर्जी में अदालत से अपील की कि अधिवक्ता अजय अग्रवाल की बातों को नहीं सुना जाना चाहिए क्योंकि उनका इस मामले में कोई अधिकार क्षेत्र नहीं बनता है। सुप्रीम कोर्ट में बोफोर्स मामले की पैरवी कर रहे अग्रवाल ने अदालत से सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को नहीं मानने की अपील करते हुए कहा था कि सरकार क्वात्रोची को बचने का मौका दे रही है।
उल्लेखनीय है कि दो दशक पुराने इस मामले में एकमात्र जीवित आरोपी क्वात्रोची देश में किसी भी अदालत में आज तक पेशी के लिए नहीं आया। दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 मई 2005 को अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोपों को खारिज कर दिया था।
इससे पहले केंद्रीय विधि मंत्री वीरप्पा मोइली ने गुरुवार को लंदन में कहा था कि सीबीआई क्वात्रोची के खिलाफ मुकदमा वापस ले लेगी।
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बस साहब, खेल ख़त्म !! २० साल चला यह खेला और कितना चलता ??
मान भी लो, कभी ना कभी तो ख़त्म होना ही था तो भैया आज क्यों नहीं ?? जो भी होता है भले के लिए ही होता है, अब किस के भले के लिए यह तो निर्भर करता है अपनी अपनी सोच पर, इस बारे में हम कुछ नहीं कहेगे ! बस कुछ तथ्य आप के सामने रख रहे है …. बाकी आप स्वयं ज्ञानी है !!
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यह राष्ट्रीय चेतना और भरोसे पर किया जाने आघात है कि बीस वर्षो की जांच-पड़ताल और इस दौरान सामने आए तमाम पुष्ट एवं परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के बावजूद बोफोर्स तोप सौदे की दलाली के मामले में यह कहा जा रहा है कि मुख्य अभियुक्त ओतावियो क्वात्रोची के खिलाफ दायर मुकदमे को वापस लेने के अलावा अन्य कोई उपाय नहीं। यदि इस मामले में कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्रीय सत्ता को यही सब करना था तो उसने पिछले लगभग छह वर्षो में देश का समय और धन क्यों बर्बाद होने दिया? केंद्रीय सत्ता चाहे जो तर्क दे, यह मानने के अच्छे भले कारण हैं कि उसने क्वात्रोची को चरणबद्ध तरीके से राहत प्रदान करने की एक सुनियोजित रणनीति पर अमल किया ताकि कहीं कोई बड़ा हंगामा न खड़ा हो। आखिर कौन नहीं जानता कि पहले क्वात्रोची के लंदन स्थित बैंक खातों से बड़ी ही बेशर्मी के साथ गुपचुप रूप से पाबंदी हटाई गई और जब इसका भेद उजागर हुआ तो कई दिनों तक कोई भी यह बताने वाला नहीं था कि यह पाबंदी किसके आदेश पर हटाई गई? इसके बाद क्वात्रोची के खिलाफ जारी रेड कार्नर नोटिस वापस ले लिया गया। स्पष्ट है कि इतना सब करने के बाद वह कहा ही जाना था जो विगत दिवस सालिसिटर जनरल के माध्यम से उच्चतम न्यायालय के समक्ष बयान किया गया। आश्चर्य नहीं कि कुछ समय के बाद क्वात्रोची को भारत आकर व्यापार करने की छूट प्रदान कर दी जाए।

नि:संदेह आम जनता की याददाश्त कमजोर होती है, लेकिन प्रत्येक मामले में नहीं। वह इस तथ्य को आसानी से नहीं भूल सकती कि बोफोर्स तोप सौदे में न केवल दलाली के लेन-देन की पुष्टि हुई थी, बल्कि इसके सबूत भी मिले थे कि दलाली की रकम किन बैंक खातों में जमा हुई। इस पर भी गौर किया जाना चाहिए कि इस सब की पुष्टि उसी सीबीआई की ओर से की गई जो आज सबूत न होने का राग अलाप रही है। इसका सीधा मतलब है कि सरकार बदलने के साथ ही सीबीआई के सबूतों की रंगत भी बदल जाती है। जो जांच एजेंसी इस तरह से काम करती है वह शीर्ष तो हो सकती है, लेकिन स्वायत्त और भरोसेमंद कदापि नहीं। क्या केंद्रीय सत्ता अब भी यह कहने का साहस करेगी कि वह सीबीआई के काम में दखल नहीं देती? लोक लाज की परवाह न करने वाली सरकारें कुछ भी कह सकती हैं, लेकिन सीबीआई को स्वायत्त बताने से बड़ा और कोई मजाक नहीं हो सकता। बोफोर्स दलाली प्रकरण की जांच के नाम पर जो कुछ हुआ उससे यह साफ हो गया कि इस देश में उच्च पदस्थ एवं प्रभावशाली व्यक्तियों के भ्रष्टाचार की जांच नहीं हो सकती। यह किसी घोटाले से कम नहीं कि भ्रष्टाचार के एक मामले की जांच में भ्रष्ट आचरण का ही परिचय दिया गया। सीबीआई ने इस मामले की जांच में जो करोड़ों रुपये खर्च किए उन्हें वस्तुत: दलाली की रकम में ही जोड़ दिया जाना चाहिए। क्या कोई यह स्पष्ट करेगा कि सीबीआई के मौजूदा अधिकारी झूठ बोल रहे हैं या पूर्व अधिकारी ऐसा कर रहे हैं? नि:संदेह दोनों ही सही नहीं हो सकते। हो सकता है कि बोफोर्स प्रकरण का शर्मनाक तरीके से यह जो पटाक्षेप हुआ वह राजनीतिक हानि-लाभ में तब्दील न हो, लेकिन यह मामला सदैव इसकी याद दिलाता रहेगा कि हमारे देश में जांच को आंच दिखाने का काम कैसे किया जाता है?

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शराब और तंबाकू के नशे के बाद अब इंटरनेट फीवर की गिरफ्त में दुनिया

शराब और तंबाकू के नशे के बाद अब एक नए नशे ने दुनिया को अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है। यह नशा है ‘इंटरनेट का नशा’। अगर आप चाह कर भी स्वयं को सोशल नेटवर्किंग साइट्स, वीडियो गेम और चैटिंग जैसी गतिविधियों में लिप्त होने से दूर नहीं रख पा रहे हैं, तो आप भी इंटरनेट ‘फीवर’ की गिरफ्त में आ चुके हैं।
अमेरिका के सिएटल में पिछले दिनों लोगों की इंटरनेट की ‘लत’ छुड़ाने के लिए एक ‘तकनीकी पुनर्वास केंद्र’ की शुरूआत की गई है। इस पुनर्वास केंद्र में इंटरनेट की लत से पीड़ित लोगों को इसका नशा छोड़ने में मदद करने के लिए थेरेपी का उपयोग किया जा रहा है। पुनर्वास केंद्र में वीडियो गेम, मोबाइल गेम, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स और चैटिंग की आदत से परेशान लोगों को उपचार मुहैया कराया जा रहा है।
45 दिवसीय थेरेपी के लिए केंद्र में 19 वर्ष के एक युवा ने स्वयं को पंजीकृत भी करा लिया है। अपने देश के नागरिकों को इस अनूठी बीमारी से निजात दिलाने की कोशिश कर रहे अमेरिका की इस पहल के बाद भारतीय विशेषज्ञों का भी मानना है कि ऐसे पुनर्वास केंद्र की अब भारत में भी जरूरत है। इस संबंध में मनोवैज्ञानिक डा. समीर पारेख कहते हैं कि इंटरनेट का बहुत ज्यादा इस्तेमाल धीरे-धीरे अन्य नशों की तरह व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले लेता है। पुनर्वास केंद्र ऐसे नशे को दूर करने में उपयोगी साबित हो सकता है।
डा. पारेख ने कहा कि मेरे पास कई ऐसे युवा उपचार के लिए आए हैं, जिन्हें इंटरनेट के उपयोग की लत लग गई थी। कई युवाओं को उनके अभिभावक ऐसी शिकायत के चलते लेकर आए थे। डा. पारेख का कहना है कि भारत में कई अभिभावक जागरूक होकर अपने बच्चों की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। प्रैक्टिसिंग साइकोलॉजिस्ट के तौर पर अमेरिका समेत कई देशों के निवासियों की मानसिक समस्याओं को आनलाइन सुलझाने वाले मनोवैज्ञानिक और भोपाल के प्रतिष्ठित भोपाल स्कूल ऑफ सोशल साइंस के प्राध्यापक डा. विनय मिश्रा ने कहा कि युवाओं में इंटरनेट के नशे की प्रवृत्ति भारत में भी बढ़ती जा रही है।
डा. मिश्रा ने उनके पास आए एक मामले के आधार पर कहा कि भोपाल के एक कालेज में पढ़ रही एक लड़की ने इंटरनेट की सुविधा उठाने के लिए अपने माता-पिता को घर के बरामदे में रहने पर मजबूर कर दिया। लड़की चाहती थी कि इंटरनेट पर चैटिंग करते समय उसे कोई परेशान न करे। उन्होंने बताया कि लड़की की इस हरकत का माता-पिता द्वारा प्रतिकार करने पर उसने अपने अभिभावकों को मारना-पीटना शुरू कर दिया। इससे परेशान होकर उसके माता-पिता ने मनोवैज्ञानिक की शरण ली, लंबे उपचार और काउंसलिंग के बाद लड़की की मानसिक स्थिति में सुधार आ सका।
मिश्र ने बताया कि कई बार लोग इंटरनेट का उपयोग मौज-मस्ती के लिए शुरू करते हैं, जो बाद में नशे का रूप ले लेता है। अगर बच्चा घंटों तक बेवजह इंटरनेट से चिपका रहे, तो उसे इसका नशा लगने की पूरी आशंका होती है। इस प्रवृत्ति को अगर विभिन्न उपायों से रोका न जाए तो यह घातक रूप ले सकता है।
इंटरनेट की आदत अब संबंधों में भी दरार डाल रही है। मुंबई में पिछले दिनों हुई एक घटना से तो कम से कम यही साबित होता है। मनोचिकित्सक डा. एसके टंडन ने मुंबई की एक अदालत में पहुंचे इस मामले के बारे में बताया कि इंटरनेट की आदत ने एक युवा दंपत्ति को तलाक के कगार पर पहुंचा दिया है। शादी के महज सात महीने के भीतर एक पति अपनी पत्नी की इंटरनेट पर चैटिंग करने की आदत से इतना परेशान हुआ कि उसे पत्नी से तलाक लेने के अलावा कोई चारा नहीं दिखा।

डा. टंडन ने बताया कि पति कमल मिश्र ने पत्नी संजना को कई बार समझाने का प्रयास किया, लेकिन उसकी आदत नहीं छूटी। वह हर रोज इंटरनेट कैफे पर जाकर घंटों चैटिंग करती थी।। इसके बाद कमल ने अपनी पत्नी को समझाने के लिए पहले मनोचिकित्सक का और न समझने पर वकील का सहारा लिया। अब कमल संजना से तलाक लेने में ही भलाई समझ रहे हैं।

 

इंडियन राम भी हुए ‘मेड इन चाइना’ के मुरीद

महंगाई के इस जमाने में सस्ता माल मिले तो कौन नहीं लपकना चाहेगा। अब यही काम रामलीला कमेटियां कर रही हैं तो इसमें उनका क्या कसूर। जी हां, चीन आ रहे सस्ते माल ने राम, रावण और सीता का कलेवर बदल दिया है। उनकी पोशाक से लेकर तीर-धनुष और तूणीर तक पर ‘मेड इन चाइना’ की मुहर आसानी से देखी जा सकती है।
कमेटी के संचालक भी खुश है कि एक तो सस्ता माल, ऊपर से कलाकारों पर चीन में बनी ड्रेस फबती भी खूब है। यही नहीं, हिंदुस्तानी माल के मुकाबले टिकाऊ भी है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से सटे गोंडा में रामलीला कमेटी चलाने वाले पंडित राम कुमार कहते हैं, ‘इस बार रामलीला के पात्रों की पोशाक विदेशों खासकर चीन से आयात की गई है।’ पहले ये पोशाकें तमिलनाडु के मदुरै और पश्चिम बंगाल के कोलकाता से मंगाई जाती थी। लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। चीन से आयातित पोशाक व अन्य साजो-सामान न सिर्फ देखने में आकर्षक हैं, बल्कि सस्ते और टिकाऊ भी हैं।
लखनऊ के अमीनाबाद में श्री गोपाल चित्रशाला के मालिक प्रेम कुमार ने भी बताया कि चीन से आए साजो-सामान इस बार ज्यादा पसंद किए गए। पिछले तीस साल से पोशाक और अन्य साजो-सामान किराए पर दे रहे प्रेम बताते हैं, ‘पहले रामलीला में इस्तेमाल होने वाला सारा सामान पड़ोसी राज्यों से आता था, लेकिन अब तो चीनी माल का बोलबाला है। इससे हमारा बिजनेस भी बढ़ गया है।’ संगम चित्रशाला के मालिक मुन्ना लाल भी प्रेम कुमार की बातों पर मुहर लगाते नजर आते हैं। वे कहते हैं, ‘पहले तो साजो-सामान आता था वह काफी भारी-भरकम होता था, जबकि चीन से आयातित माल काफी हल्का है। इसके अलावा चीनी सामानों में ज्यादा चमक-दमक भी है।’

रामलीला के बाद उसके पात्रों की पोशाक, मुखौटा, तीर, धनुष, गदा और तलवार का क्या होता है, यह पूछे जाने पर मुन्ना कहते हैं कि उनका इस्तेमाल स्कूलों और थियेटर समूहों द्वारा किया जाता है।

 

आतंकियों के आका – परवेज मुशर्रफ

परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष ही नहीं रहे हैं, बल्कि वह आतंकियों के आका भी रहे हैं। यहां तक कि एक भारतीय सेना के अधिकारी का गला रेतने वाले आतंकी को उन्होंने एक लाख रुपये के इनाम से नवाजा था। यह साल 2000 की बात है। लेकिन अगले ही साल अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद उन्हें अमेरिकी दबाव के चलते अपने इस पसंदीदा आतंकी के संगठन पर पाबंदी लगानी पड़ी थी। मुशर्रफ का यह ‘आतंकी’ चेहरा पाकिस्तान के ही मीडिया ने उजागर किया है।
‘द न्यूज’ अखबार ने रविवार को बताया है कि मुशर्रफ आतंकी कमांडर इलियास कश्मीरी के काम से इतने खुश हुए कि उन्हें इनाम में एक लाख रुपये बख्श दिए। इलियास 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में बेहद सक्रिय था। रिपोर्ट के मुताबिक 26 फरवरी, 2000 को कश्मीरी अपने 25 साथियों के साथ नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में घुसा। वह एक दिन पहले भारतीय सेना की कार्रवाई में 14 आतंकियों की मौत का बदला लेने के लिए गया था। उसने नाकयाल सेक्टर में भारतीय सेना पर घात लगा कर हमला बोल दिया। आतंकियों ने भारतीय सेना के एक बंकर को घेर लिया और ग्रेनेड से हमला किया। इस हमले में घायल एक सैन्य अधिकारी को कश्मीरी ने अगवा कर लिया और बाद में उसने अधिकारी का सिर कलम कर दिया। यही नहीं, उसने अधिकारी का कटा हुआ सिर पाकिस्तान सेना के शीर्ष अधिकारियों को पेश किया। इस पर खुश होकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाक सेना के कमांडो रहे कश्मीरी को एक लाख रुपये का इनाम दिया।
अखबार लिखता है कि कश्मीरी से मुशर्रफ को बेहद लगाव था। उन्होंने उसे आतंकी खेल खेलने की खुली छूट दे रखी थी। लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद दबाव के चलते मुशर्रफ को कश्मीरी के संगठन पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।
कौन था इलियास कश्मीरी ??
कश्मीरी हरकल-उल-जिहाद अल-इस्लामी [हूजी] का कमांडर था। उसके संबंध अल कायदा और तालिबान सहित तमाम आतंकी संगठनों से थे। बताया जाता है कि वह पिछले सप्ताह ड्रोन हमले में मारा गया।
कश्मीरी पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस गु्रप में बतौर कमांडो काम कर चुका था। अफगानिस्तान से रूसी सेना हटने के बाद पाक हुक्मरान ने उसे कश्मीरी आतंकियों के साथ काम करने के लिए भेजा था। तब 1991 में वह हूजी में शामिल हुआ। कुछ दिनों बाद हूजी प्रमुख कारी सैफुल्ला अख्तर से उसके मतभेद हो गए और उसने ‘313 ब्रिगेड’ नाम से अपना संगठन बना लिया।
गुलाम कश्मीर के कोटली का रहने वाला कश्मीरी बारूदी सुरंग बिछाने में माहिर था। अफगानिस्तान में लड़ाई के दौरान उसकी एक आंख खत्म हो गई थी। उसे भारतीय सेना ने एक बार पूंछ इलाके में गिरफ्तार भी किया था। दो साल बाद वह जेल तोड़ कर भाग निकला था। वर्ष 1998 में कश्मीरी को भारतीय सेना पर हमले करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
जैश-ए-मुहम्मद के गठन के बाद पाकिस्तानी सेना से कश्मीरी के रिश्ते खराब हो गए। सेना उसे जैश का सदस्य बनाना चाहती थी। सेना की इच्छा थी कि कश्मीरी जैश सरगना मसूद अजहर को नेता मान ले। पर उसे यह गवारा नहीं हुआ।
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अब सवाल यह उठता है कि इस खुलासे के बाद भी क्या भारत में आयोजित विभिन्न सेमिनार्रो में मुशर्रफ को बतौर महेमान बुलाने का सिलसिला जारी रहेगा ??
देखे  :-

बेशरम मुशर्रफ !!!!

 

कश्मीर में पाकिस्तान की नापाक दखल

कश्मीर में पाकिस्तान की नापाक दखल

भारत के प्रथम गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन के 27 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर के विलय-पत्र पर हस्ताक्षर करते ही भारत ने अपनी सेना को हवाई-मार्ग से श्रीनगर के लिए रवाना कर दिया था। श्रीनगर से उरी तक, यानी कृष्णगंगा नदी के पूर्वी भाग को पाकिस्तान के नियंत्रण से मुक्त करा दिया गया। एक नवंबर को राष्ट्रसंघ द्वारा युद्धविराम की घोषणा होते ही भारतीय सेना कृष्णगंगा नदी के इस पार ही रुक गई, जबकि दूसरी ओर पाकिस्तान ने युद्धविराम के 15 दिन बाद तक यानी 16 नवंबर तक कार्रवाई जारी रखी और पूरे गिलगित को अपने नियंत्रण में कर लिया। जिला मुजफ्फराबाद से 30 किलोमीटर तक यानी कृष्णगंगा का पश्चिमी भाग पाकिस्तान ने हथिया लिया और इसे आजाद कश्मीर का नाम दे दिया।
साक्ष्यों से स्पष्ट हो जाता है कि 1947 के युद्ध के लिए पाकिस्तान ही पूरी तरह उत्तरदायी है। यह बात भी साफ है कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर के सेनाध्यक्ष ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह और उनके साथियों की हत्या के लिए भी जिम्मेदार है। यह तथ्य भी सामने आ चुका है कि महाराजा हरि सिंह के साथ ‘नो वार’ समझौते के बाद भी पाकिस्तान ने 20 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर पर मुजफ्फराबाद के रास्ते हमला किया और जम्मू-कश्मीर की लगभग पांच हजार वर्गमील भूमि पर कब्जा जमा लिया। लार्ड माउंटबेटन की सलाह पर भारत ने पाकिस्तान के इस हमले के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में एक अर्जी दाखिल की, जिसकी सुनवाई आज तक पूरी नहीं हो सकी है। 1 नवंबर, 1947 को संयुक्त राष्ट्र ने युद्धविराम का आदेश दिया और उस आदेश के बाद भी अस्तौर में जम्मू-कश्मीर महाराजा द्वारा नियुक्त किए गए राज्यपाल ब्रिगेडियर घनसारा सिंह को मुस्लिम स्काउटों ने बंदी बना लिया और 16 नवंबर को उन्हें पाकिस्तान की सेना के हवाले कर दिया। इसी दिन पाकिस्तानी सैनिकों ने पूरे गिलगित-बल्तिस्तान में से गैरमुस्लिम लोगों को मार भगाया और जम्मू-कश्मीर के इस हिस्से को अपनी एक बस्ती के रूप में हथिया लिया। इसकी आबादी 5-6 लाख रही होगी और क्षेत्रफल 32,500 वर्ग मील। इसी क्षेत्र में चितराल, गिलगित और कराकोरम क्षेत्र शामिल हैं। 1963 में कराकोरम के 4,500 वर्गमील क्षेत्र को पाकिस्तान ने चीन के हवाले कर दिया।
16 नवंबर को जम्मू-कश्मीर के गिलगित का लगभग एक-तिहाई क्षेत्र पाकिस्तान ने हथिया लिया और 25 नवंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना की सहायता से कुछ लोगों ने हजारों गैर-मुस्लिमों को मीरपुर के मैदान में इकट्ठा कर उन पर गोलीबारी शुरू कर दी। तथाकथित आजाद कश्मीर भारत के नेताओं की गलतियों के कारण अस्तित्व में आया। गिलगित-बल्तिस्तान के जिलों को पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर का वैधानिक अंग करार दिया है, जिसका क्षेत्र 32,500 वर्ग मील है। उसके एक जिले चितराल को पाकिस्तान ने स्वात घाटी का जिला घोषित कर दिया है। इतना ही नहीं, पाक अधिकृत कश्मीर के 28,000 वर्ग मील भूमि पर रहने वाले 15 लाख लोगों के लिए न्यायालय की कोई सुविधा नहीं है। इन लोगों को कोई मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं है। न वहा संविधान लागू है, न कोई अस्पताल है, न कालेज है। इस क्षेत्र की कोई विधानसभा भी नहीं है। केवल पंचायत जैसी काउंसिल शोषण गृह है, जिसका प्रशासन पाकिस्तानी सेना का एक कर्नल चलाता है और बाकी प्रशासनिक अधिकार एक तहसीलदार को दिए गए हैं।
लाखों पाकिस्तानियों ने, जिनमें अधिकतर रिटायर्ड पाकिस्तानी सैनिक ही हैं, इन गरीब बेसहारा लोगों को न्याय से वंचित करके इनकी जमीनों पर कब्जा कर रखा है। यदि हालात नहीं बदलते तो 10 वषरें में गिलगित-बाल्तिस्तान की पूरी जनसांख्यिकी ही बदल जाएगी। हाल ही में बलावरिस्तान मुक्ति मोर्चा के एक नेता अब्दुल हामिद खान किसी तरह दिल्ली पहुंचे और भारत के नेताओं के सामने उन्होंने पाकिस्तान के उत्पीड़न से मुक्ति दिलाने में मदद करने की अपील की, परंतु ऐसा लगता है कि या तो भारत के राजनेता जम्मू-कश्मीर के इतिहास से बेखबर हैं या वे गिलगित में हो रहे नरसंहार की परिस्थितियों को स्वीकार नहीं करना चाहते।
आश्चर्य इस बात का है कि पाकिस्तान की ओर से अंतरराष्ट्रीय नियमों के इतने घोर आपराधिक उल्लंघन, मानवाधिकारों की अवहेलनाओं, राष्ट्रसंघ द्वारा पारित युद्ध-विराम के आदेश तथा पारित किए गये प्रस्तावों के खुल्लमखुल्ला उल्लंघन के बावजूद पूरा राष्ट्र इससे बेखबर रहा और पिछले छह दशकों से भारत व जम्मू-कश्मीर के लोगों, जिनमें बुद्धिजीवी, विचारक और राजनेता सभी शामिल है, ने पाकिस्तान के इन आपराधिक कृत्यों का मामला विश्व-समुदाय के सामने नहीं उठाया।

– प्रो. भीम सिंह  [लेखक पैंथर्स पार्टी के प्रमुख हैं]

 

बताओ करें तो करें क्या ……………….??????

हाँ हाँ यादो में है अब भी ,
क्या सुरीला वो जहाँ था ,
हमारे हाथो में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महेकता समां था ……….

वो खवाबो की थी दुनिया ……….
वो किताबो की थी दुनिया ………………
साँसों में थे मचलते ज़लज़ले और
आँखों में ‘वो’ सुहाना नशा था |

वो जमी थी , आसमां था ………..
हम खड़े थे ,
क्या पता था ???
हम खड़े थे जहाँ पर उसी के किनारे एक गहेरा सा अंधा कुआँ था ………………

फ़िर ‘वो’ आए भीड़’ बन कर ,
हाथो में थे ‘उनके’ खंज़र …………….
बोले फैंको यह किताबे , और संभालो यह सलाखें !!!
यह जो गहेरा सा कुआँ’ है …………….
हाँ …. हाँ …. ‘अंधा’ तो नहीं है !!
इस ‘कुएं’ में है ‘खजाना’ ……
कल की दुनिया तो ‘यही’ है ….

कूद जाओ ले के खंज़र ……
काट डालो जो हो अन्दर …………
तुम ही कल के हो…………..

‘शिवाजी’ ……….

तुम ही कल के हो ……………

‘सिकंदर’……………. ||


हम ने ‘वो’ ही किया जो ‘उन्होंने’ कहा,

क्युकी ‘उनकी’ तो ‘खवहिश’ यही थी ……
हम नहीं जानते यह भी कि क्यों ‘यह’ किया ………….

क्युकी ‘उनकी’ ‘फरमाइश’ यही थी |


अब हमारे लगा ‘ज़एका’ ‘खून’ का ………
अब बताओ करें तो करें क्या ???
नहीं है ‘कोई’ जो हमें कुछ बताएं …………..
बताओ करें तो करें …………..

‘क्या’ ??????

फ़िल्म :- गुलाल ; संगीत :- पियूष मिश्रा ; गीतकार :- पियूष मिश्रा

 

अब क्या कहेगे आप एसे शिक्षक को ??

अब क्या कहेगे आप एसे शिक्षक को ??

५ सितम्बर को जहाँ पूरे देश में ‘शिक्षक दिवस’ मनाया जा रहा था,वही दूसरी ओर एक शिक्षक के खिलाफ पुलिस में मामला दर्ज किया जा रहा था | अब आप पूछेगे इस का कारण ??
कारण यह कि छत्तीसगढ़ के एक स्कूल में शिक्षक ने दूसरी कक्षा के छात्रों को नंगा कर नाचने के लिए मजबूर कर दिया। इतना ही नहीं, विरोध करने पर एक छात्र के साथ अप्राकृतिक कृत्य करने की कोशिश भी की। शिक्षक के खिलाफ पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।
देर से सामने आई खबर के अनुसार, बिलासपुर जिले के छोटे से गांव टेडमा के प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने वाले खगेश कुमार सिंह नशे में धुत होकर स्कूल पहुंचे और कक्षा दो के सभी छात्रों से कपड़े उतार कर नाचने के लिए कहा। डंडे के डर से सहमे ज्यादातर छात्रों ने ‘गुरुजी’ का कहना मान लिया, लेकिन सात वर्षीय एक छात्र ने इन्कार कर दिया। फिर तो खगेश ने हद ही कर दी। वह उस बच्चे को एक कमरे में ले गया और दरवाजा बंद कर उसके साथ अप्राकृतिक कृत्य करने की कोशिश करने लगा। घटना तीन सितंबर की है। घर जाकर छात्र ने पिता को सारी बात बताई तो उन्होंने पांच सितंबर को पुलिस में शिकायत की। घटना के बाद से शिक्षक फरार है। बताया जाता है कि उक्त शिक्षक पहले भी पिकनिक के नाम पर छात्र-छात्राओं को जंगल में ले जा कर उनके साथ अश्लील हरकतें करता रहा है।
अब क्या कहेगे आप एसे शिक्षक को ??
 
1 टिप्पणी

Posted by on सितम्बर 9, 2009 में यह है बुरा