आखिरी मुगल बादशाह बहादुरशाह जफर का दीवाली मनाने का निराला ही अंदाज था। जफर की दीवाली तीन दिन पहले ही शुरू हो जाती थी। दीवाली के दिन वे तराजू के एक पलड़े में बैठते और दूसरा पलड़ा सोने-चांदी से भर दिया जाता था। तुलादान के बाद यह सब गरीबों को दान कर दिया जाता था। तुलादान की रस्म-अदायगी के बाद किले पर रोशनी की जाती थी। कहार खील-बतीशे, खांड और मिट्टी के खिलौने घर-घर जाकर बांटते। गोवर्धन पूजा के दिन नागरिक अपने गाय-बैलों को मेंहदी लगाकर और उनके गले में शंख और घुंघरू बांधकर जफर के सामने पेश करते। जफर उन्हे इनाम देते व मिठाई खिलाते थे।
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मुगल सल्तनत की दीवाली
कुछ आसपास की – दिवाली के अगले दिन छिड़ेगा हिंगोटा युद्ध

इस जंग में ‘कलंगी’ और ‘तुर्रा’ दल के या एक-दूसरे पर कहर बनकर टूटने के उत्साह से सराबोर और हिंगोट व ढाल से लैस होते हैं। गौतमपुरा नगर पंचायत के अध्यक्ष विशाल राठी ने बताया कि हिंगोट युद्ध धार्मिक आस्था और शौर्य प्रदर्शन, दोनों से जुड़ा है। इसमें जीत-हार के अपने मायने हैं। उन्होंने कहा कि इस बार भी हिंगोट युद्ध में कलगी और तुर्रा दल के बीच रोचक टकराव होने के आसार हैं। दोनों दलों के योद्धा महीनों से भिड़ंत की तैयारी कर रहे हैं। राठी ने कहा कि धार्मिक आस्था के मद्देनजर हिंगोट युद्ध में पुलिस और प्रशासन रोड़े नहीं अटकाते, बल्कि ‘रणभूमि’ के आस-पास दर्शकों की सुरक्षा व घायलों के इलाज का इंतजाम करते हैं।
याद-ए-वतन आती है दूर तक समझाने को….
चतुर्वेदी ने कहा कि यहां साउथ हॉल में हर साल दीयों और आतिशबाजी के साथ दीपावली मनाई जाती है। इस बार भी यहां अधिकतर प्रवासी इकट्ठे होंगे और त्योहार मनाएंगे।
दीवाली के साथी
आपको और आपके परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं !
और भी देशों में होता है रोशनी का जलसा

ब्राजील में रोशनी का उत्सव नववर्ष से जुड़ा है जब इस देश के लोग 31 दिसंबर की रात जल की अफ्रीकी देवी ‘इएमांजा’ की पूजा करते हैं। वे मानते हैं कि इस दिन सैंकड़ों मोमबत्तियां जलाने से देवी उन्हें दुआ देगी। कवांजा में हर वर्ष 26 दिसंबर को अफ्रीकी फसलों का त्योहार मनाया जाता है। इस दौरान हर परिवार एक सप्ताह तक सात मोमबत्तियां या दीए जलाता है।
जलाएं प्रेम का दीया

अपने नित नूतन और चिर पुरातन स्वभाव का अनुभव करने के लिए इन दबी हुई भावनाओं से मुक्त होना अति आवश्यक है। दीपावली का अर्थ है वर्तमान क्षण में जीना। अतीत का पछतावा और भविष्य की चिंता छोड़ कर वर्तमान क्षण में जिएं।
तराशते हैं लक्ष्मी फिर भी मुफलिस
पिछले दो साल से यहां साईं बाबा की प्रतिमा की मांग बढ़ी है। इनकी मूर्तियां भी बड़ी संख्या में बन रही हैं। तीन पीढि़यों से मिट्टी के दीपक बना रहे 45 वर्षीय पूरन बताते हैं कि उनके किसी बच्चे ने चाक चलाना नहीं सीखा। पूरे दिन चाक पर काम करने के बाद भी 50 रुपए नहीं मिलते। अत: अब उनके परिवार में कोई चाक नहीं चलायेगा। वे प्लास्टर आफ पेरिस की ही मूर्तियां बनाएंगे।