वैज्ञानिकों ने पहले दावा किया था कि चंद्रमा पर लगभग 40 साल पहले पानी का अस्तित्व था। यह दावा उन्होंने अपोलो अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा स्मृति के रूप में धरती पर लाए गए चंद्र चट्टानों के नमूनों के अध्ययन के बाद किया था, लेकिन उन्हें अपनी इस खोज पर संदेह भी था, क्योंकि जिन बक्सों में चंद्र चट्टानों के अंश लाए गए, उनमें रिसाव हो गया था। इस कारण ये नमूने वातावरण की वायु के संपर्क में आकार प्रदूषित हो गए थे।
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चांद पर पानी मिलने के प्रमाण
चंद्रयान ने ली लैंडिंग साइट की तस्वीर
चांद पर भेजे गए भारत के पहले यान चंद्रयान-1 ने अपोलो-15 के उतरने के स्थल [लैंडिंग साइट] पर बने एक आभामंडल की तस्वीर ली है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी [नासा] द्वारा 26 जुलाई 1971 को भेजे गए अपोलो-15 ने चंद्रमा पर 7 अगस्त, 1971 को लैंड किया था।
चंद्रयान पर लगे टेरेन मैपिंग कैमरे ने अपोलो-15 की लैंडिंग साइट पर आभामंडल की तस्वीरें लीं। वैज्ञानिकों की नजर में आभामंडल का निर्माण चांद की सतह पर इंसान के कदमों की हलचल से हुआ होगा। इससे पहले इस आभामंडल को जापान के चंद्र मिशन सेलीन ने देखा था। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी [इसरो] के स्पेस एप्लीकेशन सेंटर [एसएसी] के वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रयान-1 ने कई कोणों से आभामंडल की तस्वीरें लीं। इनसे साफ होता है कि अपोलो-15 के उतरने से चांद की सतह पर हलचल हुई थी। अपोलो कार्यक्रम के खत्म होने के बाद यह पहला मौका है कि इतने बड़े पैमाने पर मानवीय गतिविधि से पैदा हुई हलचल वाली जगह प्रकाश में आई।