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Category Archives: आतंकवाद

….ताज फिर भी सरताज है

गेट वे आफ इडिया की तरफ तिरछी निगाहो से देखते होटल ताज के सामने आज कुछ भीड़ उत्सुक तमाशबीनों कीहै या फिर जुटे है गेट वे पर रोज चहलकदमी करने वाले मुंबईकर। अगर उत्सुकता और यादों को पूरे दृश्य से निकाल दिया जाए तो एक साल पहले आज के ही दिन गेट वे और ताज में से किसी को यह अंदाज भी नहीं था कि उनके इतिहास में ठीक अड़तालीस घटे बाद एक अजीबोगरीब पन्ना जोड़ने वाले दस लोग उनकी मुंबई से कुछ ही दूर तैर रहे है। वह ऐसा इतिहास छोड़ जाएंगे जो कोई शहर, कोई इमारत और कोई देश अपने साथ जोड़ना नहीं चाहता। मगर इतिहास में रचे-बसे और रमे ताज को यह तमगा भी मिलना था कि जब दुनिया आतंक को याद करेगी तब स्मृति में शेष डब्ल्यूटीसी, मैरियट या ओक्लोहामा सिटी बिल्डिग के साथ मुंबई के ताज होटल के जलते गुंबद भी उसकी यादों में तैर जाएंगे।

ताज अगर मुंबई का गौरव है तो पूरी दुनिया के लिए आतंक के जघन्य चेहरे की पहचान भी। यह ताज के इतिहास की विलक्षण असंगति है। बुधवार यानी 25 नवंबर से 26 नवंबर तक अलग-अलग आयोजनों में मुंबई व ताज के उस महज एक साल पुराने ताजा इतिहास को याद करने वाली है जिसे देश ने विस्मय, भय, यंत्रणा, क्षोभ और करुणा के साथ करीब 60 घटे तक देखा था। आतंक की आधी झेलने वाली ताज की हेरिटेज यानी पुरानी बिल्डिग के ऊपर की अधिकाश मंजिलें अभी बंद है। गुंबद पर रोशनी है, मगर नीचे के तलों पर उदास अंधेरा है। ताज चुपचाप उन निशानों को मिटाने की कोशिश कर रहा है, जो आतंकी उसे देकर गए है। सुनते है, जनवरी में ताज का यह विंग मेहमानों के लिए खुलेगा।

आतंक के निशान भले ही मिट जाएं मगर इतिहास बड़ा जालिम है। वह अच्छा हो या बुरा, मगर चिपक कर बैठ जाता है और मिटता नहीं। लेकिन आखिर एक इमारत में कितना इतिहास भरा जा सकता है। ताज जैसी इमारतें दुनिया में बिरली ही होंगी जिनसे इतिहास इतने विभिन्न तरह के प्रसंगों में बोलता है।

विदेश न जा पाने वाले लोगों के लिए सौ साल पहले मुंबई का ताज होटल एक अविश्वसनीय इमारत थी। उम्र में गेट वे आफ इडिया से भी बड़ा ताज भारत का पहला भव्य होटल था। मुंबई में बिजली से जगमगाने वाली पहली इमारत, मुंबई में आइसक्रीम बनाने की पहली मशीन, पहली लाड्री, पालिश करने की पहली मशीन, पहली लिफ्ट, पहला जेनरेटर..और भी बहुत कुछ मुंबई को उस ताज होटल ने दिखाया जिसे बनाने की योजना सुन कर जमशेद जी की बहनें चौंक कर यह पूछ उठीं थी क्या तुम सच में एक भटियारखाना बनाओगे? खाना खाने की जगह!!

1903 में जनता के लिए खुले ताज होटल को लेकर टाटा परिवार ने कभी यह नहीं सोचा था कि 2008 में ताज के इतिहास में एक ऐसा पन्ना जुड़ेगा जिससे मुंबई की दृश्यावली की पहचान बन चुके इस जीवंत इतिहास को दुनिया में आतंक के निशाने के तौर पर भी जाना जाएगा। वक्त ने बिना मागे ताज को यह इतिहास भी बख्श दिया है।

गुरुवार को ताज के सामने मुंबईकर आतंक के उस इतिहास को याद करेगे लेकिन शायद इस गर्व के साथ कि डब्ल्यूटीसी और मैरियट अब इतिहास में शेष है, मगर आतंक से जूझ कर भी ताज सिर उठाये खड़ा है। साहस और गरिमा के साथ।

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हमले की बरसी पर बिखरे हिफाजत देने वाले हाथ !!

मुंबई को आतंक की बरसी पर यह नहीं चाहिए था। वह तो अपनी पुलिस में एकजुटता और मजबूती तलाश रही थी। लेकिन हमले से ठीक पहले उसकी पुलिस राजनीति में उलझ कर बिखर गई। मंगलवार को जब गोरेगाव के एसआरपीएफ ग्राउड में महाराष्ट्र पुलिस में एनएसजी की तर्ज पर बनी त्वरित कार्रवाई बल ‘फोर्स वन’ अपनी दमखम दिखा रही थी, मुंबई की जनता अपनी पुलिस की ताकत नहीं बल्कि पुलिस के बिखराव पर चर्चा कर रही थी। हो भी क्यों न, जहा पूर्व पुलिस कमिश्नर अब्दुल गफूर को पुलिस अधिकारियों के साहस पर शक हो और पिछले साल के हमले दौरान मराठी पुलिस व गैर मराठी पुलिस वालों की बहादुरी की तुलना हो रही हो, वहा फोर्स वन से जनता के भरोसे को फोर्स आखिर कैसे मिले।

मुंबई को मंगलवार से त्रिस्तरीय सुरक्षा घेरा मिल रहा है। लेकिन इस घेरे को बनाने वाले खुद ही अह, स्वार्थ और असमंजस से घिरे है। हालत यह है कि बरसी पर पुलिस को एकजुट करने के बजाय राज्य के गृहमंत्री आरआर पाटिल खुद गफूर के खिलाफ मुकदमे के लिए अधिकारियों को इजाजत देने के हामी है। यानी कि मोर्चे बंधने लगे है। गोरेगाव के एसआरपीएफ मैदान में आयोजन के दौरान इलीट पुलिस और आम पुलिस के बीच नजरिए का अंतर साफ देखा जा सकता था। आपसी ईष्र्या का आलम यह है कि फोर्स वन में नियुक्ति के मानदंडों तक पर सवाल उठ रहे है। साथ ही उनमें चयनित पुलिस वालों को मिल रहे प्रशिक्षण और सुविधाओं से मुंबई पुलिस के दूसरे अधिकारी और सिपाही क्षुब्ध है। गोरेगांव स्थित स्पेशल रिजर्व पुलिस बल में मंगलवार को आयोजित कार्यक्रम में डयूटी पर तैनात मुंबई पुलिस के जवान तो साफ कह रहे थे कि सबसे पहले मरना तो हमें है, लेकिन सुविधाएं और प्रशिक्षण कुछ खास लोगों को दिया जा रहा है।

मुंबई चलती रहती है मगर पिछले साल की याद कर लोग सहमे है। मुंबई में 18 साल से टैक्सी चला रहे दतिया के दिनेश शुक्ला हों या फिर मराठी मानुष अमित मोरे, दोनों ही एक बात पर राजी है कि आतंकी हमले करे तो रोकना मुश्किल होगा। पुलिस या सरकार पर इस कदर अविश्वास क्यों.? दिनेश शुक्ला कहते है कि राज ठाकरे के लंपट गुंडों को तो यह पुलिस रोक नहीं पाती, फिर भला एके-47 लिए आतंकियों से क्या निपटेगी। दूसरी तरफ अमित मोरे सीधे बाहरी यानी दूसरे प्रांतों से आए लोगों का मुद्दा उठाते है। वह कहते है कि कितने आतंकी या उनके हमदर्द यहां छिपे बैठे है। पेशे से एक निजी बैंक में प्रबंधक मोरे साथ ही सफाई भी देते है कि उनकी चिंता के मूल में बाहर से काम की तलाश में आने वाले लोग नहीं, बल्कि उनकी आड़ में मुंबई के भी क्षेत्र विशेष में इकट्ठा हो रहे लोग है।

नौकरीपेशा या रोजमर्रा काम के लिए निकलना वाला हर शख्स खौफजदा है और बस काम पूरा कर जल्दी से जल्दी घर की चारदीवारी में घुस जाना चाहता है। यूं चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात है सादी वर्दी में जगह-जगह खुफिया बल भी है। दरअसल, मुंबई हमले के एक साल तक भी भारतीय एजेंसियां या मुंबई पुलिस डेविड हेडली और तहव्वुर हुसैन राणा के बारे में कुछ पता न कर सकीं, उससे भी लोगों का अविश्वास पुलिस पर बढ़ा है। बी काम कर रहीं वासंती युके भी मानती हैं कि मुंबई को आतंकियों की नजर से भगवान ही बचा सकता है। नेताओं से तो कोई उम्मीद पहले ही नहीं थी, अब पुलिस भी जैसे लड़ रही है, उसमें तो आतंकी फायदा उठाएंगे ही।

दरअसल, शुक्ला, मोरे या वासंती की चिंता बेवजह ही नहीं है। मुंबई पुलिस कमिश्नर अब्दुल गफूर ने आतंकी हमले की बरसी से ठीक पहले विवादास्पद बयान देकर पुलिस के भीतर चल रही जंग को सतह पर ला दिया है। मामला राजनीतिक हलकों में पहुच गया है। सोमवार को पत्रकारों से बातचीत में मुख्यमंत्री व गृह मंत्री को गफूर के नजरिए पर उठे सवालों के जवाब ढूढे़ नहीं मिले। गफूर का बयान अगर सही है तो पुलिस अधिकारियों की निष्ठा और क्षमता समझी जा सकती है और अगर गलत है तो फिर मुंबई पुलिस की एकजुटता का ऊपर वाला ही मालिक है।

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मुंबई की सुरक्षा के लिए आज से तैनात फोर्स वन

देश में एनएसजी की तर्ज पर पहला त्वरित बल देने वाले पहले राज्य का तमगा मंगलवार को महाराष्ट्र ने हासिल कर लिया। गोरेगांव स्थित स्पेशल रिजर्व पुलिस फोर्स मैदान में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण व गृह मंत्री आरआर पाटिल ने औपचारिक रूप से फोर्स वन को महाराष्ट्र की सुरक्षा में तैनात करने का ऐलान किया। हेलीकाप्टर समेत 216 कमांडों से सुसज्जित फोर्स वन का पहला बैच हमले की बरसी से पहले सुरक्षा में तैनात कर दिया गया। इस मौके पर कमांडों ने अपने युद्धकौशल और आतंकियों से विभिन्न हालात में निपटने की तकनीक कौशल का भी प्रदर्शन किया।

महाराष्ट्र सरकार का दावा तो है कि फोर्स वन का प्रशिक्षण व क्षमता बिल्कुल एनएसजी सरीखी है, लेकिन यह बड़बोलापन ज्यादा है। वास्तव में क्यूआरटी को आम पुलिस वालों की तरह तीन शिफ्टों में तैनात किया जा रहा है, जबकि त्वरित बल तो 24 घंटे तैयार रहता है, लेकिन तैनात नहीं। इतना ही नहीं, एनएसजी कमांडो जहां रोजाना 300 चक्र फायरिंग करते है, वहीं फोर्स वन कमांडों के लिए 30 चक्र फायरिंग का प्रशिक्षण ही रहा है। फोर्स वन के युद्धकौशल को देखने के बाद एनएसजी के एक अधिकारी की टिप्पणी थी कि अभी इन्हें बहुत मांजने की जरूरत है, लेकिन शुरुआत होना ही अच्छा संकेत है।

 

सरकारी फाइल और मुआवजे का मरहम

अपने देश में आतंकवाद तो स्थायी मेहमान बन चुका है, लेकिन इसके शिकार हुए लोगों का मुआवजा आज भी राजनेताओं और अधिकारियों की लालफीताशाही के बीच झूलता नजर आता है। यही कारण है कि आतंकियों की गोलियों ने मरने वालों के साथ भले कोई भेद न किया हो, लेकिन मृतकों के परिजनों को मिलने वाले सरकारी मुआवजे की राशियों में यह भेद साफ नजर आता है।

मुंबई पर हुए हमले में कुल 179 लोग मारे गए थे। इनमें जो लोग सीएसटी [वीटी] रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए थे, उनके परिजनों को करीब 22 लाख रुपये मुआवजा मिलना निर्धारित हुआ था। लेकिन जो लोग स्टेशन के ठीक बाहर मरे थे, उनके लिए यह राशि घटकर सिर्फ आठ लाख रुपये रह गई। यहां तक कि इस घटना में मारे गए हेमंत करकरे, अशोक काम्टे और विजय सालस्कर जैसे अधिकारियों सहित अन्य सुरक्षाकर्मियों के परिजन भी दुर्भाग्यशाली ही साबित हुए। उन्हें रेल मंत्रालय एवं रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल से तो कुछ मिलना ही नहीं था, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने भी उनके साथ कंजूसी ही दिखाई गई। पेट्रोलियम मंत्रालय द्वारा शहीदों के परिवारों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक थोथी ही नजर आ रही है।

मुआवजे का खेल

आतंकी हमले के तुरंत बाद रेलमंत्री ने प्रत्येक मृतक के परिवार के लिए 10 लाख रुपये मुआवजा घोषित किया था। रेलवे क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से मिलने वाले चार लाख रुपये इससे अलग थे। राज्य सरकार ने भी सभी मृतकों के लिए इस बार पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा घोषित किया था। इसके अतिरिक्त उड़ीसा में चर्चो पर हुए हमले के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने आतंकवाद एवं सांप्रदायिक हिंसा में मारे गए लोगों के लिए तीन लाख रुपये की सहायता योजना शुरू की थी। इस प्रकार उक्त सभी स्त्रोतों को मिलाकर प्रत्येक सीएसटी रेलवे स्टेशन परिसर में मारे गए प्रत्येक मृतक के परिवार को कम से कम 22 लाख रुपये एवं सीएसटी परिसर से बाहर मारे गए लोगों के परिवारों को आठ लाख रुपये मुआवजा मिलना तय था। इसमें प्रधानमंत्री राहत कोष से मिलने वाली सहायता राशि शामिल नहीं है, जिसकी घोषणा हमले के दूसरे दिन ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मुंबई आकर की थी।

कंजूस राज्य सरकार

आतंकियों के हमले में मारे गए पुलिसकर्मियों के लिए राज्य सरकार ने उदारतापूर्वक 25 लाख रुपये नकद मुआवजे की घोषणा कर दी थी। लेकिन एक दिसंबर, 2008 को जारी शासनादेश से सरकार की कंजूसी उजागर हो जाती है। जिसके अनुसार उक्त राशि मिलने के बाद किसी पुलिसकर्मी की आनड्यूटी मृत्यु पर उसे गृह विभाग से मिलने वाले 13 लाख रुपये दिया जाना उचित नहीं होगा। इस प्रकार आतंकवाद की एक ही घटना में रेलवे स्टेशन के अंदर मारे गए आमजन को 22 लाख रुपये की तुलना में स्टेशन के बाहर आतंकियों की गोली से शहीद हुए पुलिसकर्मियों के परिजनों के हिस्से में महज 12 लाख रुपये ही आए।

पीएमओ का हाल

सबसे हास्यास्पद स्थिति तो सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री कार्यालय की है। 27 नवंबर, 2008 को प्रधानमंत्री द्वारा घोषित विशेष राहत राशि में घायलों एवं मृतकों को उनकी परिस्थिति के अनुसार अधिकतम दो लाख रुपये तक प्राप्त होने थे। मृतकों एवं घायलों को मिलाकर कुल 403 लोगों को यह लाभ मिलना था। आज तक सिर्फ 30 प्रतिशत लोगों को ही प्रधानमंत्री राहत कोष के चेक प्राप्त हो सके हैं। 79 के तो विवरण तक अभी राज्य सरकार ने प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं भेजे हैं। इसी प्रकार केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इस प्रकार की घटनाओं में मिलने वाली तीन लाख रुपये की राशि भी अभी 100 से कम लोगों को ही मिल सकी है।

नहीं मिले पेट्रोल पंप

पेट्रोलियम मंत्रालय की ओर से शहीदों के परिजनों को पेट्रोल पंप देने की घोषणा भी अब तक हवाई ही साबित हुई है। आधे से ज्यादा शहीदों को तो पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ ही नहीं है। जिनके नाम से पेट्रोल पंप आबंटित हुए भी हैं, उनका आबंटन भी कागजी ही है। क्योंकि उन्हें पेट्रोल पंप के बजाय पेट्रोलियम कंपनी से प्रतिमाह 25 हजार रुपये नकद दिलवाने की व्यवस्था मात्र की गई है। यह भी कब तक जारी रहेगी, कुछ स्पष्ट नहीं है। ऐसे हवाई पेट्रोल पंपों के लाभार्थियों में हेमंत करकरे एवं अशोक काम्टे जैसे हाई प्रोफाइल शहीदों के परिवार भी शामिल हैं।

 

१०० वी पोस्ट :- अत्याधुनिक हथियारों से लैस होगा एनएसजी

केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने शुक्रवार को कहा कि किसी भी प्रकार की आतंकी घटना से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड [एनएसजी] को अत्याधुनिक हथियारों से सुसज्जित किया जाएगा।
एनएसजी के 25वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा, ‘हमने एनएसजी को नागरिक विमानों के इस्तेमाल के लिए अधिकृत कर दिया है। एनएसजी को जल्द ही उच्च तकनीक वाले नए अत्याधुनिक हथियारों से लैस किया जाएगा। यह प्रक्रिया अपने अंतिम दौर में है।’
चिदंबरम ने कहा, ’26/11 की घटना के बाद एनएसजी की भूमिका एक बार फिर से परिभाषित हुई है। हमने एनएसजी के मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता तथा अन्य दो क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए है। प्रत्येक केंद्र पर 5000 जवान तैनात रहेगे।’
एनएसजी की भूमिका की सराहना करते हुए उन्होंने कहा, ‘आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए देश को समृद्ध और कुशल प्रशिक्षित एनएसजी की आवश्यकता है।’

इस मौके पर प्रसिद्ध गीतकार गुलज़ार और संगीतकार गायक शंकर महादेवन भी मौजूद थे !

 

अब तीखी मिर्च से बनेंगे ग्रेनेड

मिर्ची खाने वाले इस बात से बखूबी वाकिफ हैं कि मिर्च तीखी हो तो कान से धुंआ बनकर निकलती है, लेकिन क्या आपने कभी चिली ग्रेनेड के बारे में सुना है। देश के रक्षा वैज्ञानिक अब तीखी मिर्च से ग्रेनेड बनाने की तैयारी कर रहे हैं।

असम के तेजपुर स्थित डिफेंस रिसर्च लेबोरेटरी [डीआरएल] ने अनुसंधान के बाद निष्कर्ष निकाला है कि दुनिया की सबसे तीखी मिर्च ‘भूत जोलोकिया ‘ को ग्रेनेड में तब्दील किया जा सकता है और यह घातक भी नहीं होगा। भारतीय मिर्च की एक तेजतर्रार किस्म भूत जोलोकिया को नागा मिर्च भी कहा जाता है। यह अमेरिका को निर्यात की जाती है। यह वहां के लोगों के भोजन का एक प्रमुख हिस्सा है।

वर्ष 2007 में गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकार्ड ने भूत जोलोकिया को सर्वाधिक तीखी मिर्च घोषित किया था। इस मिर्च का करिश्मा यहीं तक नहीं है। डीआरएल के वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका पाउडर तैयार कर, उसे जानवरों को दूर भगाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

डीआरएल के वैज्ञानिक तीखे स्वाद वाली इस मिर्च से ग्रेनेड बनाने की कोशिश में हैं। भीड़ को तितर-बितर करने और अन्य उद्देश्यों के लिए पुलिस और सेना इस ग्रेनेड का इस्तेमाल कर सकते हैं। डीआरएल के वैज्ञानिक आर पी श्रीवास्तव ने बताया कि ‘चिली ग्रेनेड’ की सबसे बड़ी खासियत यह होगी कि यह घातक प्रकृति का नहीं होगा। उन्होंने बताया कि भीड़ को नियंत्रित करना हो या चरमपंथियों को उनके ठिकाने से बाहर निकालना हो, चिली ग्रेनेड लक्ष्य को भौतिक रूप से कोई नुकसान पहुंचाए बिना, अपना काम कर लेगा।

डीआरडीओ और विश्व वन्यजीव कोष भी मिर्च से ऐसा पाउडर तैयार करने के लिए प्रयासरत हैं, जिसे जंगली हाथियों को दूर भगाने के लिए रस्सियों और बाड़ पर लगाया जा सके। पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में जंगली हाथी तबाही मचाते हैं।

इस सिलसिले में एक प्रायोगिक परियोजना पर काम चल रहा है। इसके लिए मजबूत वनस्पति रेशों से जूट की बाड़ तैयार कर उस पर भूत जोलोकिया का पाउडर छिड़क दिया गया ताकि जंगली हाथी इसके करीब न आ सकें। हाथियों को पास न फटकने देने के लिए इस मिर्च के इस्तेमाल से कुछ और प्रयोग भी किए गए जो सफल रहे हैं। अब असम सरकार मिर्च की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक परियोजना पर काम कर रही है। भूत जोलोकिया मिर्च नगालैंड और असम की खासियत है।

राज्य के कृषि विभाग ने अपने वानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग को चयनित इलाकों में मिर्च की इस किस्म का उत्पादन करने का निर्देश दिया है। कृषि मंत्री प्रमिला रानी ब्रह्म ने बताया कि शुरू में मिर्च की खेती के लिए दो जिलों गोलाघाट और बक्सा को चुना गया है। उन्होंने बताया कि फिलहाल 300 हेक्टेयर भूमि में इस मिर्च की खेती की जाएगी जिससे अच्छा राजस्व मिलने की संभावना है।

भोजन में मसाले के तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली मिर्च पेट की बीमारियां दूर करने में मददगार होती है। इसे हृदयघात के लिए भी अच्छा इलाज माना जाता है।

 

आतंकियों के आका – परवेज मुशर्रफ

परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के राष्ट्रपति और सेनाध्यक्ष ही नहीं रहे हैं, बल्कि वह आतंकियों के आका भी रहे हैं। यहां तक कि एक भारतीय सेना के अधिकारी का गला रेतने वाले आतंकी को उन्होंने एक लाख रुपये के इनाम से नवाजा था। यह साल 2000 की बात है। लेकिन अगले ही साल अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद उन्हें अमेरिकी दबाव के चलते अपने इस पसंदीदा आतंकी के संगठन पर पाबंदी लगानी पड़ी थी। मुशर्रफ का यह ‘आतंकी’ चेहरा पाकिस्तान के ही मीडिया ने उजागर किया है।
‘द न्यूज’ अखबार ने रविवार को बताया है कि मुशर्रफ आतंकी कमांडर इलियास कश्मीरी के काम से इतने खुश हुए कि उन्हें इनाम में एक लाख रुपये बख्श दिए। इलियास 1990 के दशक में जम्मू-कश्मीर में बेहद सक्रिय था। रिपोर्ट के मुताबिक 26 फरवरी, 2000 को कश्मीरी अपने 25 साथियों के साथ नियंत्रण रेखा पार कर भारतीय सीमा में घुसा। वह एक दिन पहले भारतीय सेना की कार्रवाई में 14 आतंकियों की मौत का बदला लेने के लिए गया था। उसने नाकयाल सेक्टर में भारतीय सेना पर घात लगा कर हमला बोल दिया। आतंकियों ने भारतीय सेना के एक बंकर को घेर लिया और ग्रेनेड से हमला किया। इस हमले में घायल एक सैन्य अधिकारी को कश्मीरी ने अगवा कर लिया और बाद में उसने अधिकारी का सिर कलम कर दिया। यही नहीं, उसने अधिकारी का कटा हुआ सिर पाकिस्तान सेना के शीर्ष अधिकारियों को पेश किया। इस पर खुश होकर तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल परवेज मुशर्रफ ने पाक सेना के कमांडो रहे कश्मीरी को एक लाख रुपये का इनाम दिया।
अखबार लिखता है कि कश्मीरी से मुशर्रफ को बेहद लगाव था। उन्होंने उसे आतंकी खेल खेलने की खुली छूट दे रखी थी। लेकिन 11 सितंबर, 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमले के बाद दबाव के चलते मुशर्रफ को कश्मीरी के संगठन पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।
कौन था इलियास कश्मीरी ??
कश्मीरी हरकल-उल-जिहाद अल-इस्लामी [हूजी] का कमांडर था। उसके संबंध अल कायदा और तालिबान सहित तमाम आतंकी संगठनों से थे। बताया जाता है कि वह पिछले सप्ताह ड्रोन हमले में मारा गया।
कश्मीरी पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस गु्रप में बतौर कमांडो काम कर चुका था। अफगानिस्तान से रूसी सेना हटने के बाद पाक हुक्मरान ने उसे कश्मीरी आतंकियों के साथ काम करने के लिए भेजा था। तब 1991 में वह हूजी में शामिल हुआ। कुछ दिनों बाद हूजी प्रमुख कारी सैफुल्ला अख्तर से उसके मतभेद हो गए और उसने ‘313 ब्रिगेड’ नाम से अपना संगठन बना लिया।
गुलाम कश्मीर के कोटली का रहने वाला कश्मीरी बारूदी सुरंग बिछाने में माहिर था। अफगानिस्तान में लड़ाई के दौरान उसकी एक आंख खत्म हो गई थी। उसे भारतीय सेना ने एक बार पूंछ इलाके में गिरफ्तार भी किया था। दो साल बाद वह जेल तोड़ कर भाग निकला था। वर्ष 1998 में कश्मीरी को भारतीय सेना पर हमले करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
जैश-ए-मुहम्मद के गठन के बाद पाकिस्तानी सेना से कश्मीरी के रिश्ते खराब हो गए। सेना उसे जैश का सदस्य बनाना चाहती थी। सेना की इच्छा थी कि कश्मीरी जैश सरगना मसूद अजहर को नेता मान ले। पर उसे यह गवारा नहीं हुआ।
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अब सवाल यह उठता है कि इस खुलासे के बाद भी क्या भारत में आयोजित विभिन्न सेमिनार्रो में मुशर्रफ को बतौर महेमान बुलाने का सिलसिला जारी रहेगा ??
देखे  :-

बेशरम मुशर्रफ !!!!

 

सेना के पास होगा हर अहम इमारत का ब्लूप्रिंट !!

सेना के पास होगा हर अहम इमारत का ब्लूप्रिंट



मुंबई के आतंकी हमले में हाथ जलाने के बाद सरकार अब अपनी तैयारियों को हर तरह फूलप्रूफ बना लेना चाहती है। आतंक के खिलाफ कार्ययोजना को चाकचौबंद बनाने के लिए सेना की भी मदद ली जा रही है। हिफाजत के इंतजाम मुकम्मल बनाने में जुटा गृह मंत्रालय, फौज की मदद से देश के उन महत्वपूर्ण धार्मिक, व्यावसायिक और पर्यटन स्थलों कासुरक्षा ब्लूप्रिंटतैयार करवा रहा है जो आतंकियों के निशाने पर सकते हैं।

देश के चार शहरों में राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड [एनएसजी] के क्षेत्रीय केंद्र बनाने के बाद अब देश के विभिन्न इलाकों में तैनात सेना की स्पेशल फोर्सेज [एसएफ] यानी विशेष बल की बटालियनों को भी सक्रिय बनाने की तैयारी है। इस कड़ी में पश्चिमी क्षेत्र के लिए जिम्मेदार 10 पैरा का एक दल हाल ही में अहमदाबाद के अक्षरधाम मंदिर का ब्लूप्रिंट तैयार करने की गरज से मंदिर प्रांगण का मुआयना भी कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक इस पूरी प्रक्रिया में सेना की टीम ने मंदिर का आकलन आतंकियों के नजरिए से किया। टीम ने मंदिर में प्रवेश और बाहर निकलने के रास्तों, भीड़ की मौजूदगी वाले स्थानों, गुप्त दरवाजों के साथ उन सभी जगहों का मुआयना किया, जो आतंकी हमले की स्थिति में अहम हो सकते हैं। गौरतलब है कि अहमदाबाद का अक्षरधाम मंदिर सितंबर 2002 में आतंकी हमले का निशाना बन चुका है।

सूत्रों के मुताबिक सेना की टीम न केवल गुजरात के बल्कि राजस्थान के कई इलाकों का भी दौरा कर ब्लूप्रिंट तैयार करने में जुटी है जिनके सहारे किसी भी आतंकी हमले की हालत में त्वरित और कारगर कार्रवाई की जा सके। इसके अलावा देश के अन्य इलाकों में तैनात एसएफ की टीमों से भी इसी तरह के आकलन को कहा गया है। दूसरी ओर अब तक के सबसे बड़े आतंकी हमले से सबक लेते हुए मुंबई की भी संवेदनशील इमारतों और प्रतिष्ठानों का भी नए सिरे से ब्लूप्रिंट तैयार किया गया है। शहर में हाल ही में बने एनएसजी हब के साथ-साथ सघन आबादी वाले इलाकों में स्थित रिजर्व बैंक, स्टाक एक्सचेंज, कोलाबा स्थित पुलिस मुख्यालय और ऐसी ही अन्य संवेदनशील इमारतों का भी सुरक्षा ब्लूप्रिंट नए सिरे से तैयार किया गया है।

दरअसल, मुंबई आतंकी हमले के दौरान ताज होटल के नक्शे से एनएसजी कमांडो के नावाकिफ होने के कारण बहुत सारा कीमती वक्त तो बर्बाद हुआ ही, कमांडो आपरेशन भी लंबा खिंच गया। लिहाजा, गृह मंत्रालय के लिए सुरक्षा का नया मूलमंत्र यही है कि सेना हो या अ‌र्द्धसैनिक बल, आतंकियों को कमरतोड़ जवाब फौरन मिलना चाहिए। सूत्र बताते हैं कि सुरक्षा बलों के बीच तालमेल की नई केमेस्ट्री के लिए देश में तैनात सेना की इंफेंट्री बटालियनों को भी आतंकी हमलों की हालत में पहले वार के लिए तैयार किया जाएगा।

 

बताओ करें तो करें क्या ……………….??????

हाँ हाँ यादो में है अब भी ,
क्या सुरीला वो जहाँ था ,
हमारे हाथो में रंगीन गुब्बारे थे
और दिल में महेकता समां था ……….

वो खवाबो की थी दुनिया ……….
वो किताबो की थी दुनिया ………………
साँसों में थे मचलते ज़लज़ले और
आँखों में ‘वो’ सुहाना नशा था |

वो जमी थी , आसमां था ………..
हम खड़े थे ,
क्या पता था ???
हम खड़े थे जहाँ पर उसी के किनारे एक गहेरा सा अंधा कुआँ था ………………

फ़िर ‘वो’ आए भीड़’ बन कर ,
हाथो में थे ‘उनके’ खंज़र …………….
बोले फैंको यह किताबे , और संभालो यह सलाखें !!!
यह जो गहेरा सा कुआँ’ है …………….
हाँ …. हाँ …. ‘अंधा’ तो नहीं है !!
इस ‘कुएं’ में है ‘खजाना’ ……
कल की दुनिया तो ‘यही’ है ….

कूद जाओ ले के खंज़र ……
काट डालो जो हो अन्दर …………
तुम ही कल के हो…………..

‘शिवाजी’ ……….

तुम ही कल के हो ……………

‘सिकंदर’……………. ||


हम ने ‘वो’ ही किया जो ‘उन्होंने’ कहा,

क्युकी ‘उनकी’ तो ‘खवहिश’ यही थी ……
हम नहीं जानते यह भी कि क्यों ‘यह’ किया ………….

क्युकी ‘उनकी’ ‘फरमाइश’ यही थी |


अब हमारे लगा ‘ज़एका’ ‘खून’ का ………
अब बताओ करें तो करें क्या ???
नहीं है ‘कोई’ जो हमें कुछ बताएं …………..
बताओ करें तो करें …………..

‘क्या’ ??????

फ़िल्म :- गुलाल ; संगीत :- पियूष मिश्रा ; गीतकार :- पियूष मिश्रा