मैं भारत माँ का प्रहरी हूँ , घायल हूँ पर तुम मत रोना, साथी घर जाकर कहना , संकेतों में बतला देना, यदि हाल मेरे पिताजी पूछे तो, खाली पिंजरा दिखा देना, इतने पर भी वह न समझे तो … तो होनी का मर्म समझा देना यदि हाल मेरी माताजी पूछे तो मुर्झाया फूल दिखा देना इतने पर भी वह न समझे तो दो बूंद आंशु बहा देना यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, जलता दीप बुझा देना इतने पर वह न समझे तो मांग का सिंदूर मिटा देना यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो माँ का प्यार जाता देना इतने पर वह न समझे तो सैनिक धर्म बतला देना …
( आज फेसबुक के हल्ला बोल क्लब पर Shiv Pratap Singh Srinet जी के प्रोफाइल पर यह कविता दिखी तो मन में आया कि यह आप सब तक भी पहुंचनी चाहिए … सो उनसे आज्ञा ले कर यहाँ प्रस्तुत कर दी )
us shwet himon par hari bhuja se laal rang jab girta hai..balidaan amar ho jaata hai, tab ek tiranga banta hai…sainik ko salaam , jo seema par hain aur jo desh ke andar bhi tainaat hain…bahut sundar rachna…
देव कुमार झा
जनवरी 5, 2012 at 12:48 अपराह्न
शायद इसकी प्रशंसा मे शब्द कम हैं….. बहुत अच्छी प्रस्तुति…. हम केवल लाईक किये और आप ब्लाग पर ले आए….. वाह शिवम भईया आज लाज़वाब हैं…. 🙂
ब्लॉ.ललित शर्मा
जनवरी 5, 2012 at 1:55 अपराह्न
सुंदर कविता है, कई दिनों से ढूंढ रहा था। बचपन में पढी थी। आभार
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
जनवरी 5, 2012 at 2:45 अपराह्न
यह कविता सिर झुकाने वाली वाली है!! आज बी.एस.एफ. हेडक्वार्टर्स में भी जलसा जैसा कुछ था.. उधर से ही आ रहा हूँ अभी!!
नीरज गोस्वामी
जनवरी 5, 2012 at 4:35 अपराह्न
मार्मिक रचना…
नीरज
shikha varshney
जनवरी 5, 2012 at 5:43 अपराह्न
सर झुक जाता है श्रद्धा से ऐसी रचनाओं पर.
ब्लॉग बुलेटिन
जनवरी 5, 2012 at 7:53 अपराह्न
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार – आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – आखिर हम जागेंगे कब….- ब्लॉग बुलेटिन
रश्मि प्रभा...
जनवरी 5, 2012 at 8:44 अपराह्न
माँ का विश्वास है … सारे धर्म निभाएगा
दिलीप
जनवरी 6, 2012 at 3:12 पूर्वाह्न
us shwet himon par hari bhuja se laal rang jab girta hai..balidaan amar ho jaata hai, tab ek tiranga banta hai…sainik ko salaam , jo seema par hain aur jo desh ke andar bhi tainaat hain…bahut sundar rachna…
Rss Vaishali
जनवरी 6, 2012 at 9:16 पूर्वाह्न
मार्मिक कविता …
यद्यपि बहुत पहले सुना था इसे
प्रवीण पाण्डेय
जनवरी 6, 2012 at 10:31 अपराह्न
जय हिंद..
उपेन्द्र नाथ
जनवरी 7, 2012 at 11:15 पूर्वाह्न
एक सैनिक के मर्म को उद्धरित करती हुई सुंदर कविता ………..
Mukesh Kumar Sinha
जनवरी 9, 2012 at 11:49 पूर्वाह्न
hamare desh ke karndhaar, hame bacha ke rakhne wale … tumhe naman\!!
बी एस पाबला BS Pabla
जनवरी 10, 2012 at 11:15 पूर्वाह्न
जय हिंद
प्रतीक माहेश्वरी
जनवरी 12, 2012 at 11:30 पूर्वाह्न
क्या बेहतरीन शब्दों में सैनिक धर्म का मर्म बतलाया है.. बहुत ही बेहतरीन रचना है.. साथ-बांटने के लिए धन्यवाद..
प्यार में फर्क पर अपने विचार ज़रूर दें…