आज बाल दिवस है … पर इतने सालों के बाद भी पूरे देश में … यह सामान रूप से नहीं मनाया जाता … २ चित्र दिखता हूँ आपको … अपनी बात सिद्ध करने के लिए …
साफ़ साफ़ समझ में आता है कि इस में किसकी गलती है … एक जगह सारे तामझाम किये जाते है इस सालाना दिखावे के लिए वही दूसरी किसको भी इतनी फुर्सत नहीं है कि थोडा सा दिखावा ही कर जाता इन बच्चो के सामने …
PADMSINGH
नवम्बर 14, 2011 at 9:53 पूर्वाह्न
किसी ने ठीक ही कहा है…
महत्वपूर्ण यह नहीं कि हमें विरासत में क्या मिला है विचारणीय यह है कि हम विरासत में क्या दे कर जा रहे हैं
Babli
नवम्बर 14, 2011 at 10:02 पूर्वाह्न
बहुत ही दुःख और अफ़सोस होता है ये सब देखकर जहाँ हमारे देश के एक राज्य में बाल दिवस धूम धाम से मनाया जाता है और एक राज्य में बच्चे बिल्कुल अंजान हैं और इस उम्र में ताश खेलते हुए नज़र आ रहे हैं! क्या यही है बच्चों का भविष्यत?
Ratan Singh Shekhawat
नवम्बर 14, 2011 at 10:02 पूर्वाह्न
बस एक दिन मना लिया बाल दिवस और हो गयी कर्तव्य की इतिश्री!!!!
Gyan Darpan
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प्रवीण पाण्डेय
नवम्बर 14, 2011 at 3:26 अपराह्न
एक ही देश, दो चित्र..
शिवम् मिश्रा
नवम्बर 14, 2011 at 6:56 अपराह्न
आपकी पोस्ट की खबर हमने ली है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर – पधारें – और डालें एक नज़र – १ दिन बाल दिवस – ३६४ दिन भाड़ में जाओ दिवस – ब्लॉग बुलेटिन
shikha varshney
नवम्बर 14, 2011 at 8:02 अपराह्न
क्या होगा ये दिवस मना कर…
चला बिहारी ब्लॉगर बनने
नवम्बर 14, 2011 at 10:05 अपराह्न
अफ़सोस!!पदम सिंह जी की बात को आगे बढाते हुए…
हमने एक स्वर्णिम विरासत पाई है, मगर उसे बनाए रखने की योग्यता नहीं…!
मन के - मनके
नवम्बर 15, 2011 at 12:57 अपराह्न
देश के विकास की त्रासदी.काशः,देश के कर्णधार यह सब देख पाते.
Reena Maurya
नवम्बर 15, 2011 at 5:11 अपराह्न
sach me bahut hi dukhad ghatana hai..
in baccho ke vikas ke liye bhi sarkar kokoi kadam uthana chahiye..
कुमार राधारमण
नवम्बर 15, 2011 at 9:51 अपराह्न
धरोहर के साथ खिलवाड़ करने का खामियाजा आने वाली पीढ़ियों को भी भुगतना होता है।
निर्मला कपिला
नवम्बर 17, 2011 at 10:59 पूर्वाह्न
हम सभी उत्सव एक ही दिन मनाने के आदी हो गौए हैं\ मातृ दिवस पितृ दिवस या फिर कोई भी त्यौहार आदि। शुभकामनायें। कृ्षण और सुदामा — ये अन्तर तो हर युग मे रहा है और शायद रहेगा भी। आखिर सरकारें कैसे चलेंगी चाहे कोई भी पार्टे4ए आ जाये ये दशा नही बदलेगी। शुभकामनायें\
दिगम्बर नासवा
नवम्बर 19, 2011 at 3:48 अपराह्न
एक दिन वैसे तो याद दिलाने के लिए होता है पूरे साल काम करने क लिए पर अब यह एक दिन ही काम करने के लिए बन कर रह गया गई …
प्रेम सरोवर
नवम्बर 20, 2011 at 6:48 पूर्वाह्न
आपके पोस्ट पर आकर अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट भोजपुरी भाषा का शेक्शपीयर- भिखारी ठाकुर पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद
अनुपमा पाठक
नवम्बर 23, 2011 at 9:49 अपराह्न
यही तो दुखद है…
कब आएगी समता!