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सिजदा शेख सलीम चिश्ती की शान में

03 मार्च
तेरी इक निगाह पर सब कुछ लुटाने आये हैं

27 फरवरी का दिन बेहद खास था….उस दिन में फ़तेहपुर सिकरी में था।इस दिन पूरी दुनिया हजरत मोहम्मद साहब का जन्मदिन मना रही थी. ये दिन मेरे लिए दो वजह से खास था.पहला शेख सलीम चिश्ती की पवित्र दरगाह पर था दूसरा इस मुकद्दस जगह पर मैं अपनी पत्नी के साथ था.ये मेरे लिए मेरे अरमान का पूरा होना था.जो हो चूका था….मैंने कई साल पहले ये तय किया था की कि इस दरगाह पर मैं सबसे पहले पत्नी के साथ ही आऊंगा.असल में….. मैं अपनी इस नयी जिंदगी की शुरुआत इस दरगह से करना चाहता था.ये मेरा एक ख्वाब था.जो हकीक़त में तब्दील हो चूका था.
हज़रत शेख सलीम १४७८ से १५७२ के बीच लोकप्रिय हुए.वे चिश्तिया सिलसिले के नायाब नगीने है. ये समय हिंदुस्तान के इतिहास में मुग़ल सल्तनत के सम्राट अकवर के नाम दर्ज़ है.इस दरगाह को अकवर की जियारत से खास शोहरत मिली.शेख साहब से अकवर ने औलाद की दुआ मांगी थी.जो उसके सम्राज्य को सम्भाल सके.इस तरह की अनगिनत किस्से और कहानियाँ शेख साहब से जुड़े हुए हैं.जो फतेहपुर की सरहद में दाखिल होते ही आपसे टकराने लगते है.अरावली की पर्वत श्रखंला पर रोशन इस इलाके में एक रूहानी एहसास जिस्म में उतरने लगता है.जो शेख साहब के इस दौर में भी मौजूद होने की तस्दीक करता है.प्रिया भी इस दरगाह पर पहली बार आई थी.हम दोनों ने मिल कर शेख साहब का सिजदा किया….जियारत की….माँगा कुछ नहीं बस इस जिंदगी की इब्तदा को सलाहियत से अंजाम तक पहुचाने की ख्वाहिश उनके सामने रख दी.
चादर चूमने के बाद सिर उठा तो प्रिया का चेहरा सामने आ गया. प्रिया के चेहरे पर एक चमक थी….उसकी आख़ों में हया थी…एक जुम्बिश थी.शायद ये इशारा था कि
दरगाह से हमारी ख्वाहिशों के पूरा होने का सिलसिला शुरू हो चूका है.प्रिया और मैं शेख साहब की दरगाह पर सिर झुका कर बुलंद दरवाज़े से सिर उठा के निकला….अब मझे एहसास हो रहा था कि आखिर अक़बर ने इस ज़मीन को फतेहपुर सिकरी का नाम क्यों दिया….मुझे लगता है कि अक़बर ने गुजरात की जंग जीतने के बाद नहीं बल्कि यहाँ जियारत करने के बाद इस जगह का नाम फ़तेहपुर सिकरी रखा होगा.क्योंकि यहाँ आने के बाद इंसान के साथ फ़तेह शब्द जुड़ जाता हैं…जैसे अक़बर के साथ जुडा है.
हृदेश सिंह

 
6 टिप्पणियां

Posted by पर मार्च 3, 2010 में बिना श्रेणी

 

6 responses to “सिजदा शेख सलीम चिश्ती की शान में

  1. vedvyathit

    मार्च 3, 2010 at 10:26 अपराह्न

    aap ke apne to koi poorv prush hain hi nhi is liye yh sb kr rhe ho ya ye btao ki aap ke poorv prushon ke vishy me kis ne shrdha nivedn ki hai kon holi khela hai kon kumbh me nhane gya hai ya kis ne srv sktiman srv vyapk ishvr ke liye stuti gayn kiya hai
    dr.ved vyathit

     
  2. शिवम् मिश्रा

    मार्च 4, 2010 at 3:50 अपराह्न

    Aameen.

     
  3. psingh

    मार्च 6, 2010 at 11:35 पूर्वाह्न

    हृदेश जी
    बहुत सुन्दर पोस्ट चिस्ती साहब पर
    अच्छी जानकारी
    अच्छे लब्जों में बयां की
    आभार ……………

     
  4. singhsdm

    मार्च 9, 2010 at 5:04 अपराह्न

    भाई
    तुमको और प्रिया दोनों को चिश्ती साहब की दरगाह पर जियारत करने की बधाई……लेख अच्छा है
    .

     
  5. singhsdm

    मार्च 9, 2010 at 5:18 अपराह्न

    भाई
    तुमको और प्रिया दोनों को चिश्ती साहब की दरगाह पर जियारत करने की बधाई……लेख अच्छा है

     
  6. Hapi

    अप्रैल 12, 2010 at 2:30 पूर्वाह्न

    hello… hapi blogging… have a nice day! just visiting here….

     

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