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राजनीतिक अवसरवादिता – अब बस भी करो !!

17 नवम्बर

उत्तर प्रदेश के दो बड़े नेता मुलायम सिंह और कल्याण सिंह जिस तरह यकायक एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हो गए उससे उनकी राजनीतिक अवसरवादिता का ही पता चलता है। अब इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि मुलायम सिंह ने जब यह समझा कि कल्याण सिंह उनके वोट बढ़ाने का काम कर सकते हैं तब उन्होंने उन्हें गले लगा लिया और जब यह समझ आया कि उनका साथ महंगा पड़ा तो दूध से मक्खी की तरह निकाल फेंका। कल्याण सिंह से तौबा करने के संदर्भ में मुलायम सिंह की इस सफाई का कोई मूल्य नहीं कि वह तो उनकी पार्टी में थे ही नहीं और उन्हें आगरा अधिवेशन का निमंत्रण पत्र गलती से चला गया था। एक तो कल्याण सिंह के स्पष्टीकरण से यह साफ हो गया कि मुलायम सिंह की यह सफाई सही नहीं और दूसरे यह किसी से छिपा नहीं कि आगरा अधिवेशन में सपा ने उन्हें किस तरह हाथोंहाथ लिया था। कल्याण सिंह ने भले ही सपा की विधिवत सदस्यता ग्रहण न की हो, लेकिन वह पार्टी के एक नेता की तरह ही मुलायम सिंह के पक्ष में खड़े रहे और उनकी ही तरह भाजपा को नष्ट करने का संकल्प लेते रहे। यह बात और है कि सपा को उनका साथ रास नहीं आया और पिछड़े वर्गो का एकजुट होना तो दूर रहा, मुलायम सिंह के परंपरागत वोट बैंक में भी सेंध लग गई। यह आश्चर्यजनक है कि सपा नेताओं ने यह समझने से इनकार किया कि कल्याण सिंह से नजदीकी मुस्लिम वोट बैंक की नाराजगी का कारण बन सकती है।

इसमें संदेह है कि सपा के कल्याण सिंह से हाथ जोड़ने के बाद मुस्लिम वोट बैंक फिर से उसकी ओर लौट आएगा। इसमें भी संदेह है कि एक तरह से सपा से निकाल बाहर किए गए कल्याण सिंह का भाजपा में स्वागत किया जाएगा। जिस तरह मुलायम सिंह ने कल्याण सिंह को गले लगाकर अपनी विश्वसनीयता को क्षति पहुंचाई उसी तरह कल्याण सिंह भी अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं। फिलहाल यह कहना कठिन है कि उनकी भाजपा में पुन: वापसी हो पाएगी या नहीं, लेकिन यह लगभग तय है कि उनकी वापसी का भाजपा को कोई लाभ नहीं मिलने वाला। कल्याण सिंह भले ही प्रायश्चित के रूप में भाजपा को मजबूत करने की बात कह रहे हों, लेकिन आम जनता यह कैसे भूल सकती है कि वह कल तक भाजपा को मिटा देने का संकल्प व्यक्त कर रहे थे? सवाल यह भी है कि आखिर उन्हें प्रायश्चित के कितने मौके किए जाएंगे? राजनीतिक स्वार्थो के लिए किसी भी हद तक जाने की एक सीमा होती है। यह निराशाजनक है कि कद्दावर नेता होते हुए भी मुलायम सिंह और कल्याण सिंह, दोनों ने इस सीमा का उल्लंघन करने में संकोच नहीं किया। वोट बैंक के रूप में ही सही आम जनता इतना तो समझती ही है कि राजनेता किस तरह उसके साथ छल करते हैं। वोट बैंक निश्चित ही बैंक खातों में जमा धनराशि नहीं कि उसे मनचाहे तरीके से दूसरे के खाते में स्थानांतरित किया जा सके। मुलायम सिंह और कल्याण सिंह का हश्र यह बता रहा है कि वोटों के लिए कुछ भी कर गुजरने और यहां तक कि आम जनता की भावनाओं से खेलने के क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं।

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2 responses to “राजनीतिक अवसरवादिता – अब बस भी करो !!

  1. M Verma

    नवम्बर 17, 2009 at 4:42 अपराह्न

    आम जनता इतना तो समझती ही है कि राजनेता किस तरह उसके साथ छल करते हैं। ‘

    फिर भी उन्ही के मकडजाल मे फ़ंस जाती है!!!!

     
  2. Krishna Kumar Mishra

    नवम्बर 20, 2009 at 12:39 अपराह्न

    हम डिप्लोमेट्स की बात न ही करे

     

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