शाहजहां और मुमताज के प्रेम की निशानी के रूप में मशहूर ताजमहल में, हकीकत में शहंशाह की तीन और बेगमों के मकबरे बने हुए हैं, जो मुख्य मकबरे [मुमताज महल का मकबरा] की तरह ही मुगल वास्तुकला और पच्चीकारी के श्रेष्ठ नमूने हैं परंतु इन्हें एएसआई ने तालों में कैद कर रखा है।
मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की मौत के बाद उसकी याद में ताज का निर्माण [सन् 1631 से 1653 तक] कराया था। प्रेम की निशानी ताज और मुमताज-शाहजहां के मकबरे को देखने के लिए हर रोज हजारों देश-विदेशी सैलानी जुटते हैं। उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नहीं होता कि खूबसूरत ताज में बादशाह की तीन और बेगमों के मकबरे भी हो सकते हैं।
ताज पूर्वी गेट पर बांयी ओर बने दालान [वर्तमान में यह हिस्सा सीआईएसएफ के पास है] के ऊपर शाहजहां की बेगम इजुन्निसा का मकबरा है। इजुन्निसा मुगल बादशाह अकबर के नौ रत्न में शामिल अब्दुल रहीम खानखाना की नातिन थी और उसे शादी के बाद अकबराबादी महल बेगम का खिताब मिला था।
एएसआई के अभिलेखों के मुताबिक शाहजहां ने ताज के निर्माण के दौरान सन् 1631 से 1648 के बीच यह मकबरा बनवाया। मकबरे में अकबराबादी महल बेगम की सफेद संगमरमरी कब्र स्थित है। जिस पर पच्चीकारी के जरिए फूल और पत्तिया बनी हुई हैं, जो मुगलकालीन कारीगरी का बेहतरीन नमूना है।
पूर्वी गेट के दायीं ओर बने दालान [वर्तमान में यहा पोस्ट आफिस बना हुआ है] के ऊपर शाहजहां की बेगम फतेहपुरी महल बेगम का मकबरा बना है। एएसआई के मुताबिक इस मकबरे का निर्माण भी 1639 से 1648 के बीच हुआ था। मकबरा पूरी तरह अकबराबादी महल बेगम के मकबरे की तरह बना है, केवल कब्र में पच्चीकारी का काम नहीं है। इसके बजाय फतेहपुरी महल बेगम की कब्र में लगे संगमरमरी पत्थर को ही तराश कर फूल-पत्तियों की शक्ल दी गई है।
इसके अलावा ताज पूर्वी गेट के बाहर गौशाला के सामने शाहजहां की तीसरी पत्नी सरहिंदी बेगम का मकबरा और मस्जिद है। जो अन्य मकबरों की तरह मुगल वास्तुकला का एक उदाहरण है। एएसआई अभिलेखों के मुताबिक सरहिंदी बेगम सरहिंद के गर्वनर की पुत्री थीं और उनके मकबरे का निर्माण भी अन्य मकबरों के साथ ही हुआ।
कोई नहीं पहुंच पाता मकबरों तक
हर रोज हजारों सैलानियों की आमद के बाद भी इन मकबरों पर जाने वालों की संख्या शून्य है। वजह, ताज के अंदर कहीं भी यह जानकारी देने की व्यवस्था नहीं है कि शाहजहां की अन्य बेगमों के मकबरे भी स्मारक में हैं।
ऊपर से एएसआई ने अकबराबादी महल बेगम और फतेहपुरी महल बेगम के मकबरों तक जाने वाली सीढि़यों के द्वारों पर ताले लगा रखे हैं। यहा सीआईएसएफ के जवान भी तैनात रहते हैं। वहीं सरहिंदी बेगम का मकबरा खुला तो है परंतु स्मारक का ही हिस्सा होते हुए भी गेट से बाहर है, ऐसे में कोई वहा पहुंच नहीं पाता।
इस संबंध में ताज के संरक्षण सहायक मुनज्जर अली ने बताया कि इन मकबरों के भ्रमण को कोई नहीं आता, इसी कारण सीढि़यों पर ताले लगे रहते हैं। यदि कोई इनका भ्रमण करने की इच्छा जताता है तो उसे जाने की इजाजत दी जाती है।
मुगल वास्तुकला के हैं श्रेष्ठ नमूने
अकबराबादी महल बेगम और फतेहपुरी महल बेगम के मकबरे भी मुमताज के मकबरे की तरह ही पूर्ण रौजा है यानि मकबरे के साथ बाग भी है। जो नहरों [पानी गुजरने को बनी नालियां] के जरिए चार भागों में विभक्त है। बीच में ऊंची चौकी पर खूबसूरत तालाब बना हुआ है। चौकी के चारों तरफ दुहरी सीढि़या हैं और जालीदार बेदिकाएं लगी हैं। यहा फूलदार पौधों के लिए क्यारियां बनी हुई हैं। बाग में ही लम्बाकार चौकी पर मकबरा बना है। यह अष्टभुजा इमारत है, जिसके बाहर की और 12 फीट चौड़ा दालान बना है।
खंभों पर आधारित तीन-तीन दातेदार मेहराब बने हैं, इनके ऊपर छज्जा है। मकबरा लाल पत्थर का बना है परंतु इसके ऊपर सफेद संगमरमर का प्याजिया गुम्बद बना हुआ है। जिसके शीर्ष पर पदमकोश और कलश लगे है। वहीं सरहिंदी महल बेगम के मकबरा चारों ओर बने बाग के मध्य में बना है, परंतु मकबरा मुगलकालीन शैली में ही निर्मित है।
M Verma
नवम्बर 16, 2009 at 4:45 अपराह्न
अच्छी जानकारी
आभार
प्रेयशी मिश्रा
फ़रवरी 24, 2012 at 3:37 अपराह्न
Reblogged this on ताजमहल या तेजोमहाल and commented:
आपकी प्रस्तुति सराहनीय हैँ
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ताजमहल के बारे मेँ अद्भुत संग्रह दर्शन के लिए हमारी साइट पर संचरण करेँ
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