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भारत है बालिका बधुओं का देश! – यूनीसेफ

09 अक्टूबर
भारत निरंतर एक विश्वशक्ति बनने की राह पर अग्रसर है। इसकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया मान रही है। लेकिन कई बार भारत की ऐसी तस्वीर भी देखने को मिलती है जिसमें उसका खूबसूरत चेहरा कहीं छिप जाता है।
दो दिन पहले ही एक रिपोर्ट में भारत  में ‘हाई चाइल्ड मोरटेलिटी रेट’ की खबर आई थी। अब यूनीसेफ ने यह कहकर भारत  की चिंता और बढ़ा दी है कि यहां दुनिया की एक तिहाई बाल बधुएं हैं।
टीवी सीरियल बालिका वधु में आनंदी और जगदीश की कहानी का उद्धेश्य निश्चित ही बाल विवाह की समस्या को उजागर करना है। लेकिन भारत  में लाखों ऐसी आनंदी हैं जिनकी छोटी उम्र में ही शादी कर उनका बचपन उनसे छीन लिया गया है। यूनाइटेड नेशंस की यूनिट यूनीसेफ ने अपनी नई रिपोर्ट ‘प्रोग्रेस फॉर चिल्ड्रन: ए रिपोर्ट कार्ड ऑन चाइल्ड प्रोटेक्शन’ में कहा गया है कि लिट्रेसी रेट बढ़ने और चाइल्ड मैरिज पर कानूनी रोक होने के बावजूद भारत में धर्म और परंपराओं के चलते बाल विवाह आज भी जारी है।
रिपोर्ट के अनुसार, विश्व के एक तिहाई बाल विवाह अकेले भारत में ही होते हैं, जबकि यहां कई नवजात बच्चों का बर्थ रजिस्ट्रेशन भी नहीं कराया जाता है।
साउथ एशिया में दुनिया के किसी अन्य हिस्से के मुकाबले सबसे अधिक बाल विवाह  होने को रेखांकित करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत और नेपाल में सबसे अधिक बाल विवाह होते हैं जो १०% या उससे अधिक हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि विश्व की आधे से अधिक बालिका वधुएं साउथ एशिया में हैं। यह भी कहा गया है कि 2007 में भारत में 2.5 करोड़ लड़कियों की शादी  18 साल की उम्र तक कर दी गई थी। इतना ही नहीं भारत , बांग्लादेश और नेपाल में कई लड़कियों की शादी दस साल की उम्र  के अंदर ही कर दी गई है।
नो बर्थ रजिस्ट्रेशन
इसी क्षेत्र में आधे से अधिक नवजात शिशुओं के जन्म को रजिस्टर ही नहीं किया जाता। रिपोर्ट कहती है कि एक अनुमान के अनुसार, साउथ एशिया में 2007 में ४७%  बच्चों का जन्म के समय रजिस्ट्रेशन नहीं किया गया और ऐसे दो करोड़ 40 लाख बच्चों में से दस लाख 60 हजार भारत से थे। रिपोर्ट के अनुसार, 2000-08 के बीच अफगानिस्तान में सिर्फ 6 %  और बांग्लादेश में 10 %  ही जन्म  के रजिस्ट्रेशन कराए गए थे, जबकि भारत में 41 % और मालदीव में 73 %  जन्म रजिस्टर्ड थे।
भारत में तीन करोड़ चाइल्ड लेबर
यूनीसेफ की बाल संरक्षण विभाग की प्रमुख सुसेन बिसेल ने कहा कि हमें कार्रवाई के लिए डेटा की जरूरत है। हम इस मामले में सुनिश्चित हो सकते हैं कि यदि हमारी कार्रवाई सबूतों पर आधारित है तो हम जो कर रहे हैं वह सही है।
चाइल्ड लेबर के संबंध में यूनीसेफ ने अनुमान व्यक्त किया है कि दुनियाभर में पांच से 14 साल की उम्र  के 15 करोड़ बच्चे चाइल्ड लेबर के दंश को झेल रहे हैं। रिपोर्ट कहती है कि साउथ एशियाई क्षेत्र के 13 % बच्चे यानी करीब चार करोड़ 40 लाख चाइल्ड लेबर हैं। इनमें से करीब तीन करोड़ बच्चे अकेले भारत में निवास करते हैं।
बनानी होगी पॉलिसी
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन तथ्यों के आधार पर चाइल्ड लेबर की समाप्ति के लिए क्षेत्र आधारित नीतियां बनाना जरूरी है। इसके साथ ही यह भी बताया गया है कि चाइल्ड लेबर, प्रॉस्टीट्यूशन और घरेलू कामकाज के लिए बहुत से नेपाली बच्चों का भारत  में शोषण होता है। इसी मकसद से बहुत से पाकिस्तानी लड़के, लड़कियों को मानव तस्करी के जरिए अफगानिस्तान ले जाया जाता है।
तो तरक्की नहीं करेगा समाज

यूनीसेफ की चीफ एन्ना वेनमैन ने कहा कि यदि किसी समाज के इतने छोटे बच्चों का जबरन बाल विवाह, सैक्स वर्कर के तौर पर शोषण किया जाएगा और उन्हें मूल अधिकारों से वंचित किया जाएगा तो वह समाज तरक्की नहीं कर सकता। वेनमैन ने कहा कि बच्चों के अधिकारों के हनन की गंभीरता को समझना पहला कदम है ताकि एक ऐसा माहौल बनाया जा सके जहां बच्चे सुरक्षित हों और उनकी क्षमताओं का पूर्ण विकास करने में मदद मिल सके।

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